ये है बॉलीवुड के हिन्दूद्रोही ज़िहाद का सबसे मारक/घातक प्रकरण
-सतीश चन्द्र मिश्रा की कलम से-
Positive India:Satish Chandra Mishra:
बॉलीवुड में हिन्दू धर्म के ख़िलाफ़ ज़िहाद के संदर्भ में दीवार फ़िल्म की वह पटकथा सोशल मीडिया में बहुत चर्चित हो चुकी, जिसका नायक प्रचंड नास्तिक था। मंदिर के प्रसाद से इतनी नफरत करता था कि उसे हाथ तक नहीं लगाता था। लेकिन इस्लामी धार्मिक प्रतीक 786 नंबर के बिल्ले को वही नायक अगाध आस्था और श्रद्धा में डूबकर अपने कलेजे से चिपकाए रहता था। आज के दोगले सेक्युलरिज्म की ही भांति दीवार फ़िल्म के पटकथा लेखक की वह दोगली नास्तिकता बॉलीवुड में हिन्दू धर्म के खिलाफ़ ज़िहाद का प्रारंभिक चरण था। अगले डेढ़ दो दशकों में वह कितना ताकतवर और खतरनाक हो गया इसका सबसे मारक/घातक उदाहरण आज इस पोस्ट में लिख रहा हूं।
1973 में 29 वर्ष के एक संगीतकार ने हिंदी फ़िल्मो में प्रवेश किया था। अगले 15 वर्षों में इस संगीतकार ने 36 फिल्मों में संगीत दिया था। 1987 में इस संगीतकार ने चरम को तब छूआ था जब दूरदर्शन पर कालजयी धरावाहिक “रामायण” प्रसारित हुआ था। रामायण को सर्वकालीन सर्वाधिक लोकप्रिय धारावाहिक बनाने में उस धारावाहिक के अमर संगीत का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। रामायण धारावाहिक का अमर गीत “हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की…” जिसे पिछले वर्ष दिसंबर में यूट्यूब पर अपलोड किया गया और उसे अबतक 11.76 करोड़ लोग देख चुके हैं। इतनी अभूतपूर्व सफलता के आसपास तक कोई दूसरा गीत आजतक नही पहुंच सका है। उस गीत को अपने संगीत से सजाने के साथ ही साथ लिखा भी उसी संगीतकार ने। उनका नाम था आदरणीय रविंद्र जैन जी। उनके नाम के समक्ष आदरणीय क्यों लिख रहा हूं। इसका कारण इसी पोस्ट के अंत में लिख रहा हूं, जिसे जरूर पढ़िएगा, पढ़कर आप सुखद आश्चर्य से सराबोर हो जाएंगे। लेकिन पहले उस बॉलीवुड ज़िहाद का खतरनाक सच जान समझ लीजिए। 1987 में शुरू हुआ रामायण धारावाहिक 1988 में खत्म हुआ था। इसी के साथ रविन्द्र जैन पर बॉलीवुड ज़िहाद चला रहे बॉलीवुड माफिया का कहर बरसने लगा था। आपको आश्चर्य होगा कि 15 वर्षों की समयावधि में अपने सुपरहिट गीत संगीत से सजी हुईं “चोर मचाए शोर”, गीत गाता चल, अंखियों के झरोखों से, नदिया के पार, चितचोर, फकीरा सरीखी अनेक फिल्मों समेत 36 फिल्मों के संगीतकार रहे रविंद्र जैन जी के पास 1987-88 में रामायण को मिली कालजयी सफलता के बाद काम का अकाल पड़ गया था। 15 वर्षों में 36 फिल्मों का संगीत देने वाले रविन्द्र जैन को अगले 26 वर्षों में केवल 10 फिल्मों में काम मिला था। जिनमें हिना को छोड़कर शेष 9 फिल्में छोटे मोटे निर्माताओं की बी और सी ग्रेड की फिल्में थीं। जबकि होना यह चाहिए था कि “रामायण” के संगीत की अभूतपूर्व सफलता के बाद उनके पास काम की बाढ़ आ जानी चाहिए थी। लेकिन बॉलीवुड के ज़िहाद माफिया को रविंद्र जैन द्वारा “हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की…” सरीखी अमर रचना करने वाला गीतकार संगीतकार अपने राह की सबसे बड़ी बाधा लगा था। अतः उसे सुनियोजित तरीके से समाप्त कर दिया गया था। केवल रविंद्र जैन ही नहीं। रामायण के बाद दूसरे सबसे सफल धारावाहिक महाभारत में भी उसके संगीत की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका थी। उस अमर संगीत को देने वाले संगीतकार राजकमल ने महाभारत से पहले 16 वर्षों में 16 फिल्मों में संगीत दिया था लेकिन महाभारत की अभूतपूर्व सफलता के बाद अगले 16 वर्षों में केवल 3 फिल्मों में संगीतकार का कार्य मिला था। वह तीनों ही फिल्में बहुत छोटे निर्माताओं की बी सी ग्रेड की ही फिल्में थीं।
अब यह भी जान लीजिए कि भजनों से सजे भक्ति संगीत को घर घर तक पहुंचाने वाले गुलशन कुमार की 1997 में हत्या कर दी गयी। अनूप जलोटा, अनुराधा पौड़वाल सरीखे भजन गायक अचानक गायब हो गए। चैनलों के पर्दों पर अपनी राक्षसी भावभंगिमाओं के साथ लगभग नग्न होकर नाचने गाने वाले रैपर और रीमिक्सर गायक गायिकाएं छा गए। इन्होंने भारतीय सभ्यता संस्कृति को पूरी तरह तहस नहस करने वाली अश्लीलतम प्रस्तुतियों की भरमार कर दी। एक और हैरतअंगेज तघ्य यह भी जानिए कि 1954 में शुरू हुए फ़िल्फेयर एवार्ड में 1989 तक दिए गए वर्ष के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के 34 एवार्ड में से 3 बार यह एवार्ड जीतने वाले संगीतकार मुस्लिम थे। लेकिन इसके बाद 1990 से 2021 तक दिए गए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के 32 एवार्ड में से 20 बार यह एवार्ड पाने वाले संगीतकार मुस्लिम थे। 1990 के दशक में उभरे उदित नारायण, कुमार सानू, सोनू निगम, अभिजीत सरीखे कई प्रतिभाशाली गायक उभरे और गायब हो गए। उनकी जगह पाकिस्तान से आयातित गायक गायिकाएं बॉलीवुड पर किस तरह छा गए यह पूरे देश ने देखा है। हिन्दू, हिंदुत्व,हिन्दू धर्म के ख़िलाफ़ बॉलीवुड के इस सुनियोजित ज़िहाद की यह कहानी बहुत लंबी है। अभी जारी रखूंगा। लेकिन अंत में यह बता दूं कि रविंद्र जैन मेरे लिए आदरणीय क्यों हैं।
पत्रकारिता में प्रवेश से पूर्व होटल मैनेजमेंट का डिप्लोमा प्राप्त करने के पश्चात अपनी इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग पूर्ण करने के लिए मई 1991 में लखनऊ के एकमात्र पंचतारा होटल क्लार्क्स अवध में कार्य प्रारम्भ किया था। उस समय 1991 के लोकसभा और उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव का प्रचार चरम पर था। विभिन्न दलों के स्टार प्रचारकों के रूप में लखनऊ पहुंचने वाले फिल्मी सितारों का एकमात्र ठिकाना क्लार्क्स अवध ही बना हुआ था। उन दिनों मेरा कार्य फ्रंट ऑफिस (रिसेप्शन) पर था। अतः उन सबसे मेरा सामना होता था। भाजपा के प्रचार के लिए रविंद्र जैन और शत्रुघ्न सिन्हा भी लखनऊ पहुंचे थे। रविंद्र जैन को सुनने के लिए उनकी चुनावी सभाओं में अपार भीड़ उमड़ रही थी। उनके द्वारा गाए जा रहे उनके लिखे रामायण धारावाहिक के गीतों, तथा मंगल भवन अमंगल हारी… सरीखी चौपाइयों पर जनता सुधबुध खो कर झूमती थी। मैंने उनसे मिलने की इच्छा व्यक्त की तो उन्होंने कहा प्रचार से लौटने के बाद रात में मेरे कमरे में आइयेगा। जब मैं उनसे मिलने पहुंचा और डोरबेल बजायी तो उन्होंने अंदर बुला लिया। लेकिन अंदर जाकर मैंने देखा कि वह महान विभूति पटरे के अंडरवियर और सैंडो बनियाइन पहने हुए आराम से पालथी मारकर बैठकर भोजन कर रही है। यह देख मैं उनसे क्षमा मांगते हुए तत्काल वापस जाने लगा लेकिन उन्होंने मुझे रोकते हुए कहा कि, नहीं नहीं कोई बात नहीं, बैठो। इतने प्रख्यात व्यक्तित्व की ऐसी सहजता से मैं हतप्रभ था। कुछ क्षणों की उस भेंट में मैंने साहस कर के उनसे पूछ लिया था कि आपका होटल का बिल आप स्वंय देंगे जबकि प्रचार के लिए आए सभी स्टार प्रचारकों का बिल भुगतान के लिए हम लोग भाजपा कार्यालय भेज रहे हैं। यह प्रश्न मैंने इसलिए पूछा था क्योंकि फ्रंट ऑफिस का कार्य संभालने के कारण मैं इस तथ्य से परिचित था। रविंद्र जैन जी ने मुझे जो जवाब दिया था उसे मैं आजीवन नहीं भूलूंगा। उन्होंने मुझसे कहा था कि मैं भाजपा का चुनाव प्रचार करने नहीं आया हूं, मैं रामकाज के लिए आया हूं। रामकृपा से जितना सम्भव हो रहा है , उतना योगदान कर रहा हूं। यही वह क्षण था जब रविंद्र जैन मेरे लिए केवल संगीतकार मात्र नहीं रह गए थे। उस दिन से वो मेरे लिए वो परम् आदरणीय रामभक्त रविंद्र जैन हो गए थे, मेरी अंतिम सांस तक मेरे लिए वो आदरणीय ही रहेंगे।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार है)