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उन को मुस्लिम वोट चाहिए , इन को हिंदू ग्राहक

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India: Dayanand Pandey:
भारतीय राजनीति भी अजीब है। राजनीतिक पार्टियों को जातीय जनगणना चाहिए। आरक्षण चाहिए। मुस्लिम वोट चाहिए। मुस्लिम को हिंदू नेता नहीं पर बहुसंख्यक हिंदू ग्राहक चाहिए। नहीं व्यापार बैठ जाएगा। हलाल सर्टिफिकेट का जूनून भी चाहिए। गाय का मांस भी चाहिए। खाद्य सामग्री पर थूकने आदि का अधिकार भी चाहिए। काफिर का कंसेप्ट भी। यह तो वही हुआ कि चीन का बहिष्कार भी चाहिए और सस्ता चीनी सामान भी।

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अपनी दुकान पर प्रोप्राइटर का नाम क़ानूनी तौर पर लिख देने में नुकसान क्या है। अगर आप किसी का धर्म भ्रष्ट करने का ठेका लेना चाहते हैं तो कोई समाज कैसे इस की इज़ाज़त दे देगा। आप को अगर झटके से परहेज़ की इज़ाज़त है तो किसी को अपनी धर्म के मुताबिक़ , अपने त्यौहार पर अपनी पसंद की जगह से खाने-पीने का अधिकार भी क्यों नहीं होना चाहिए।

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लेकिन क्या कीजिएगा कि हम ऐसे समाज में रहते हैं जिस में लोगों को आक्रमणकारी मुगलों , ब्रिटिशर्स से ख़तरा नहीं दिखा , ब्राह्मणवाद से ख़तरा बहुत दिखता है। हिंदू-मुसलमान की अजीब रेखागणित है। लेकिन सेक्यूलरिज्म के फ्राड और मुस्लिम तुष्टिकरण की इंतिहा है यह। दुकान पर नाम लिखने का क़ानून पुराना है। भाजपा का बनाया क़ानून नहीं है। भाजपा के योगी ने कांवड़ियों के तप , नियम , व्रत की निष्ठा और आस्था को बचाए रखने के लिए इस क़ानून की याद दिला दी है बस। अगर यह क़ानून पुराना नहीं होता तो घड़ियाली आंसू बहाने वाले यह लोग अब तक किसी अदालत का दरवाज़ा खटखटा चुके होते।

बहुत से लोग दिल्ली में करीम होटल के मुरीद हैं। तो क्या करीम लिख देने से उस का होटल नहीं चलता ? हबीब हेयर ड्रेसर लिख देने से क्या हबीब का कारोबार नहीं चलता ? लखनऊ में टूंडे-कबाब की धूम रहती है। हलाल लिखने से तमाम प्रोडक्ट बिकते हैं। नाम की चीटिंग ग़लत है। इन दिनों तमाम बांग्लादेशी , रोहिंग्या तो साधू-संत के वेश में भी घूमते मिलते हैं। जहां-तहां पकड़े जा रहे हैं। अकसर। तो इन को भी अपना नाम छुपाने की इज़ाज़त दे देनी चाहिए।

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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