www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

ठेस

laxmi narayan hospital 2025 ad

पॉजिटिव इंडिया:रायपुर;
सिरचन जब अपने काम में मगन होता है तो उसकी जीभ ज़रा बाहर निकल आती है,होंठ पर।बचपन से ना जाने कितनी बार इस कहानी को पढ़ी और हमेशा ये वाक्य पढ़कर आँख के सामने सिरचन के जीभ को एक तरफ निकल जाने की कल्पना आनंदित कर देती ,और मुझे सिरचन पर ढेर सारा प्यार उमड़ आता।
कलाकार और वो भी अपनी विलुप्त होती कला का ,बड़ा संवेदनशील होता है।घी के खखोरन से सनी मूढ़ी की कल्पना से उसकी पनियायी जीभ ,काकी यानि घर की मालकिन से किसी रोज़ी मजूरी की आस में नहीं ,स्नेह के डोर में खिंचा चला आता है।वह स्नेह वह सम्मान में ,जो उसे पूरे गाँव में सिर्फ इसी हवेली में मिलता है।
आगे नाथ ना पीछे पगहा ,ऐसी परिस्थिति वाला सिरचन को लोग भले ही चटोरा समझें लेकिन वो जीभ का नहीं आत्मसम्मान का भूखा है।वो बेगारी में काम करता है लेकिन इसी शर्त पर कि उसे भी वही खाने को मिले जो उस घर का सदस्य खाता है।
अब यहाँ पर देखिये कि रेणू जी ने कितनी गहरी बात कही है । सिरचन के सम्मान पाने की चाह करना सिर्फ ज़्यादा मज़दूरी या मोहर छाप धोती पाना नहीं है। उसकी तुष्टि इसी बात पर है कि उसे इसी घर के सदस्य की भाँति सम्मानित भोजन मिले।
मँझली भाभी और चाची के कटु वचन से आहत ,घर के बड़े बूढ़ों की तरह मँझली बहू को ताने कसता है ,झिड़कता है।पर घर की सबसे छोटी बेटी मानू के प्यार भरे पान के बीड़े में अपने अँदर की कटुता को घोल लेता है ।लेकिन चाची के ज़हर भरी बोली और मालकिन की झिड़की नहीं सह पाता और उन्हीं के आँगन के पिछवाड़े में पान की पीक को थूक कर चला जाता है। अपने घर में अपनी घरवाली की बनाई फटी हुई शीतलपाटी में सिरचन उदास लेटा हुआ है।जब हवेली के बबुआजी उसे बुलाने जाते हैं।कलाकार का स्वाभिमान आहत है।हवेली वालों के व्यवहार से ,लेकिन मानू का स्नेह अभी भी दिल में कहीं किसी कोने में ज़िन्दा है।तभी तो उस पुरानी शीतलपाटी की क़सम खाने के बाद भी वो मानू की बिदाई के दिन उसकी सारी फ़रमाइशी चीज़ों को बड़े प्रेम और लगन से बनाकर स्टेशन में देने जाता है और मानू के मोहरछाप धोती के पैसे देने पर दोनों कान पकड़ जीभ निकाल हाथ जोड़ लेता है। मानू और बबूआजी सिरचन की महीन ,बेमिसाल कलाकारी देख ,जो उसने चिक और नये फ़ैशन के शीतलपाटी में उतार कर रख दिये हैं।
ऐसी बेजोड़ कलाकृति जो ना कभी बनी थी ,ना कभी बनेगी।जो सिरचन का निश्छल स्नेह है सिर्फ मानू बिटिया के लिये। अँचल की सोंधी खुशबू को अपने सरल शब्दों में उतारने के लिये “रेणू” की क़लम बेजोड़ है ,लाजवाब है।

साभार: श्रीमती नीलिमा मिश्रा

Leave A Reply

Your email address will not be published.