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उन जैसा ना कोई था, ना कोई होगा।

चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी इतिहास का निर्विवाद महानायक है।

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Positive India:Satish Chandra Mishra:
चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी इतिहास का निर्विवाद महानायक है।
लाहौर में सांडर्स वध के साथ ही शुरू हुई भगतसिंह और राजगुरू की क्रांति यात्रा को कुछ क्षणों बाद ही दरोगा चनन सिंह ने अपने पिस्तौल की गोलियों से वहीं खत्म कर दिया होता, यदि उस समय वहां मौजूद चंद्रशेखर आजाद के माऊजर से बरसे अंगारों ने गद्दार चनन सिंह को मौत के घाट उतार देने में जरा सी भी देर कर दी होती। सांडर्स को मौत के घाट उतारने के पश्चात भाग रहे भगतसिंह और राजगुरू का पीछा कर रहा चनन सिंह राजगुरू को पीछे छोड़ कर भगत सिंह के करीब पहुंचने वाला था। दरअसल भगतसिंह को पकड़ने में ही उसकी विशेष रूचि थी क्योंकि वह भगत सिंह को सांडर्स पर गोली चलाते हुए देख चुका था। अतः स्थिति यह बन गयी थी कि सबसे आगे भगत सिंह भाग रहे थे। उनके पीछे चनन सिंह भाग रहा था। चनन सिंह के पीछे राजगुरू भाग रहे थे। तीनों के मध्य एक दूसरे से कुछ फुट की दूरी रह गयी थी। डीएवी कॉलेज की छत से यह नजारा देख रहे चंद्रशेखर आजाद को तत्काल यह आभास हो गया था कि भगतसिंह से शारीरिक रूप से कई गुना बलिष्ठ चनन सिंह किसी भी क्षण भगतसिंह को पकड़ कर उनपर हावी हो जाएगा। अतः चंद्रशेखर आजाद का इतिहास प्रसिद्ध माऊज़र गरजने लगा था और अगले ही क्षण चनन सिंह की लाश सड़क पर बिछ गयी थी। जरा सोचिए कि कुछ फुट की दूरी पर एकदूसरे के पीछे भाग रहे 3 व्यक्तियों में से बीच वाले व्यक्ति को दूर से गोली मार कर मौत के घाट उतार देने वाले चंद्रशेखर आजाद का निशाना कितना अचूक था और उन्हें अपने निशाने पर कितना गजब का आत्मविश्वास था। क्योंकि जरा सी चूक से उनके माउजर से निकला अंगारा भगतसिंह या राजगुरू को ही मौत के घाट उतार सकता था। चंद्रशेखर आजाद के लगभग प्रत्येक साथी ने इस घटना का उल्लेख अपने संस्मरणों या लेखों में कभी न कभी अवश्य किया है। मैं आज इस घटना का उल्लेख यह स्पष्ट करने के लिए विशेष रूप से कर रहा हूं क्योंकि यह घटना इस तथ्य का साक्ष्य है कि भीषण गरीबी और विपत्तियों में पले बढ़े चंद्रशेखर आजाद इतने अचूक निशानेबाज कब और कैसे बने थे यह रहस्य कभी किसी ठोस तथ्य या साक्ष्य के साथ उजागर नहीं हो सका है। ध्यान रहे कि निशानेबाजी आज भी दुनिया का सबसे महंगा शौक/खेल समझा माना जाता है। आज से सौ वर्ष पूर्व क्या स्थिति रही होगी। इसका अनुमान लगाना बहुत सरल है। चन्द्रशेखर आजाद के अत्यन्त करीब रहे सभी क्रांतिकारी साथियों ने अलग अलग समय पर लिखे गए अपने संस्मरणों में इस सच्चाई को खुलकर स्वीकारा है कि चंद्रशेखर आजाद के व्यक्तिगत जीवन की कोई विस्तृत जानकारी उनमें से किसी के पास कभी नहीं रही क्योंकि आजाद अपने व्यक्तिगत जीवन, अपने माता पिता परिवार की चर्चा किसी से कभी नहीं करते थे। देश के लिए उन्होंने सबकुछ त्याग दिया था।
ऐसे त्यागी, बलिदानी, विशिष्ट, विलक्षण क्रांति नायक चंद्रशेखर आजाद के जन्मदिन पर उनको शत शत नमन, हार्दिक श्रद्धांजलि।🙏🏻
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा

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