बयाना मुद्राभांड का भारतीय इतिहास में बड़ा महत्व है
-राजकमल गोस्वामी की कलम से-
Positive India: Rajkamal Goswami:
१९४६ में भरतपुर के महाराजा बृजेंद्र सिंह शिकार से लौटे तो उनके द्वारा चलाये गये कारतूसों में लगे पीतल की तलाश में निकले बच्चों के हाथ एक कांसे का लोटा लगा । इस लोटे में दो हज़ार स्वर्ण मुद्रायें थी जो करीब १५०० साल पहले स्कंदगुप्त के शासनकाल में वहाँ छिपाई गई होंगी । स्कंद गुप्त इसलिये क्योंकि परवर्ती गुप्त राजाओं की कोई मुद्रा वहाँ नहीं पाई गई ।
जब तक भरतपुर की पुलिस पहुँचती करीब ३०० सिक्के गलाये जा चुके थे जिसके दंडस्वरूप राजा ने ग्रामवासियों पर बारह हज़ार रुपये का अर्थदंड ठोंक दिया । स्वतंत्रता के बाद राजा ने करीब ३०० सिक्के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को भेंट किये जिन्होंने ए एल आल्टेकर को अध्ययन हेतु ये सिक्के उन्हें सौंपे । आल्टेकर का बयाना मुद्राभांड का कैटेलॉग किसी भी संग्राहक के संकलन में पाया जाता है । बाद में ये सिक्के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखवा दिये । राजा साहब ने कुछ सिक्के बांबे और पटना के संग्रहालयों में भेजे और शेष सिक्के राजस्थान सरकार के पास सुरक्षित बताये जाते हैं ।
बयाना मुद्राभांड का भारतीय इतिहास में बड़ा महत्व है । प्राचीन भारत का यह सबसे बड़ा मुद्रा भंडार है जो एक स्थान पर मिला है और यह भारत के स्वर्ण युग के इतिहास पर प्रकाश डालता है । सिक्कों की शुद्धता भी उस युग की सम्पन्नता पर प्रकाश डालती है । समुद्रगुप्त ने तो केवल सोने के ही सिक्के ढलवाये ।
भरतपुर राजघराने का भी प्राचीन धरोहरों के प्रति दृष्टिकोण अनुकरणीय है जिन्होंने रियासत गँवा देने के बाद भी इतने मूल्यवान सिक्के संग्रहालयों में रखवा दिये ।
सिक्के इतिहास के प्रथम श्रेणी के श्रोत माने जाते हैं । काच गुप्त आज भी इतिहासकारों के लिये इसलिये खोज का विषय बना हुआ है क्योंकि उसका नाम अनेक सिक्कों पर उत्कीर्ण पाया जाता है ।
चित्र स्कंदगुप्त का छत्र शैली का अत्यंत मूल्यवान सिक्का जो बयाना मुद्राभांड में पाया गया । यह अभी तक अपनी तरह का एकमात्र सिक्का है । साथ में कांस्यपात्र जिसमें यह ख़ज़ाना रखा गया था ।
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)