रायपुर दक्षिण विधान सभा उपचुनाव में कांग्रेस की जीत संभावना पर शायद ही कोई यकीन करें
-दिवाकर मुक्तिबोध की कलम से-
Positive India: Diwakar Muktibodh:
-मुकाबला कांटे का-
रायपुर दक्षिण विधान सभा उपचुनाव में कांग्रेस की जीत संभावना पर शायद ही कोई यकीन करें लेकिन चमत्कार कही भी, कभी भी हो सकते हैं और राजनीति भी इससे परे नहीं है. कांग्रेस ने नये व युवा चेहरे के रूप में आकाश शर्मा को टिकिट देकर जो दावं खेला है यदि वह कारगर रहा तो रायपुर दक्षिण का परिणाम एक ऐसे कीर्तिमान के रूप में दर्ज हो जाएगा जिसकी प्रतीक्षा कांग्रेस डेढ दशक से कर रही है. लेकिन क्या ऐसा होगा ? सोचना कठिन है. खासकर इसलिए क्योंकि इस उपचुनाव में भाजपा की कमान उस व्यक्ति के हाथ में है जिसने कभी कोई चुनाव नहीं हारा. बृजमोहन अग्रवाल रायपुर निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन के पूर्व एव॔ बाद में लगातार आठ दफे विधान सभा चुनाव जीत चुके हैं और अब रायपुर लोकसभा के सांसद है. वे अपने क्षेत्र में चुनावी जीत के पर्याय माने जाते हैं. चूँकि रायपुर दक्षिण 2008 से उनका निर्वाचन क्षेत्र रहा है और इस उपचुनाव में टिकिट भी उनकी पसंद के अनुसार सुनील सोनी को दी गई है इसलिए यह चुनाव जीतना उनके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न भी है. वे सार्वजनिक तौर पर कह भी चुके हैं कि वे ही चुनाव लड़ रहे हैं. इसका अर्थ है कांग्रेस के आकाश शर्मा को भाजपा के दो अलग-अलग राजनीतिक शख्सियतों, बृजमोहन अग्रवाल व सुनील सोनी की संयुक्त ताकत से मुकाबला करना पड़ रहा है. सुनील सोनी रायपुर के मेयर व 2019 में रायपुर से लोकसभा सदस्य रह चुके हैं. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकिट न देकर बृजमोहन अग्रवाल को चुनाव मैदान में उतारा था जो तब रायपुर दक्षिण से विधायक एवं विष्णुदेव साय सरकार के वरिष्ठ मंत्री थे. उनके द्वारा रिक्त की गई सीट पर यह चुनाव हो रहा है. एक तरह से इसे भाजपा के दो नेताओं के क्षेत्र की अदला-बदली कह सकते हैं. यहां मतदान 13 नवंबर को है. नतीजे 23 को आ जाएंगे.
रायपुर लोकसभा हो या राजधानी क्षेत्र की चारों विधान सभा सीटें रही हों, दबदबा भाजपा का ही रहा है, विशेषकर लोकसभा चुनाव 1996 से अब तक भाजपा ही जीतती रही है. रमेश बैस रायपुर लोकसभा क्षेत्र के 1996 से 2014 तक लगातार सात बार सांसद रहे. अर्थात यहां तीन दशक से कांग्रेस की दाल नहीं गल पा रही है अलबत्ता विधान सभा चुनाव में नतीजे उपर-नीचे होते रहे हैं. मसलन 2018 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने रायपुर की चार में से तीन सीटें जीतीं किंतु 2023 में वह सभी चारों सीटें हार गई जिनमें बृजमोहन अग्रवाल की रायपुर दक्षिण शामिल है. बृजमोहन ने पिछला विधान सभा चुनाव रिकॉर्ड 67 हजार से अधिक वोटों से जीता था. अब इस उपचुनाव में नया कीर्तिमान बनेगा या ध्वस्त होगा , या कोई उलटफेर होगा, यह परिणाम से स्पष्ट हो जाएगा अलबत्ता इस चुनाव को बृजमोहन पूर्व की तुलना में अधिक गंभीरता से ले रहे हैं क्योंकि यहां भाजपा की जीत उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है.
रायपुर दक्षिण शत-प्रतिशत शहरी क्षेत्र है. सर्वाधिक आबादी ओबीसी की है जो करीब 53 प्रतिशत है जिसमे साहू समाज 16 प्रतिशत के साथ सबसे बड़ा समाज है. यादव व कुर्मी 6-6 प्रतिशत, एससी 10 , एसटी 4 व सामान्य वर्ग के लगभग 16 प्रतिशत मतदाता इस क्षेत्र में हैं जिसमे पांच प्रतिशत ब्राम्हण हैं. 17 प्रतिशत अल्पसंख्यक मतदाताओं में मुस्लिम दस प्रतिशत के आसपास है. मतदाता करीब 2 लाख 60 हजार है जिसमे पुरूषों की तुलना में स्त्री मतदाताओं की संख्या कुछ अधिक है. जातीय समीकरण की बात करें तो शहरी मतदाताओं के लिए जाति से कही अधिक पार्टी व प्रत्याशी की छवि महत्वपूर्ण रही है. लेकिन इस निर्वाचन क्षेत्र में बृजमोहन अग्रवाल की लोकप्रियता पार्टी से उपर है. हाल ही में, 24 अक्टूबर को एक पत्र वार्ता में बृजमोहन कह चुके हैं कि दक्षिण का चुनाव उनके चेहरे के बिना नहीं लड़ा जा सकता. इसे उनका आत्मविश्वास कहें या अहंकार, अब तक का सत्य यही रहा है. पर सवाल है क्या वे इस सिलसिले को सोनी के मामले में भी कायम रख पाएंगे?
सुनील सोनी भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं तथा पार्टी ने उन्हें टिकिट देकर पुन: पुरस्कृत किया है. उन पर भरोसा जताया है. विधान सभा का यह उनका पहला चुनाव है. इसके पूर्व नगर निगम के पार्षद का चुनाव हो , सभापति का हो या मेयर का अथवा लोकसभा का, उनकी जीत में अधिकतम योगदान व्यक्तिगत छवि से कही अधिक पार्टी की साख का रहा है. यद्यपि वे निर्विवाद हैं तथा उन पर कोई दाग भी नहीं है लेकिन वे जनता के नेता नहीं है. बृजमोहन की छत्रछाया में उनकी राजनीति चलती रही है. इस उपचुनाव में भी बृजमोहन के रहते उनकी उपस्थित गौण हो गई है. रायपुर दक्षिण उपचुनाव में उनके चुनाव का संचालन आधिकारिक रूप से शिवरतन शर्मा कर रहे हैं. शर्मा भी बृजमोहन खेमे के हैं. दरअसल यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि दक्षिण का चुनाव बृजमोहन एंड पार्टी लड़ रही है. वे कैसा चक्रव्यूह रचेंगे , इसका खुलासा बाद में होगा पर यह तय है पिछले चुनाव की तरह यह एकतरफा चुनाव नहीं होगा. सुनील सोनी को उम्मीदवार बनाने से पार्टी का एक वर्ग असंतुष्ट व नाराज है क्योंकि वे देख रहे हैं कि एक ही नेता को बार-बार मौका दिया जा रहा है. बृजमोहन विरोधी खेमे के नेता और उनके समर्थक यदि भीतर ही भीतर तोडफोड पर उतारू हो गए तो सोनी को दिक्कत हो सकती है. हालांकि आमतौर पर उपचुनाव के नतीजे सत्तारूढ दल के पक्ष में ही आते हैं पर किसी भी चुनाव में अपवाद से इंकार नहीं किया जा सकता. वर्ष 2006 में छत्तीसगढ़ में रमनसिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी. उनके शासनकाल में कोटा में उपचुनाव हुआ जहां भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी भूपेंद्र सिंह ठाकुर कांग्रेस की रेणु जोगी से हार गए थे. कांग्रेस अपनी सीट बचाने में कामयाब रही थी. रायपुर दक्षिण में भी अप्रत्याशित घट सकता है, यद्यपि संभावना न्यून है पर कांग्रेस की तैयारी को देखते हुए यह सहज प्रतीत होता है कि मुकाबला एकतरफा नहीं, कांटे का रहेगा.
कांग्रेस को बड़ा फायदा आकाश शर्मा की युवाओं के बीच सक्रियता व लोकप्रियता से है. वे प्रदेश युवक काँग्रेस के निर्वाचित अध्यक्ष होने के साथ ही कांग्रेस की छात्र विंग में काम कर चुके हैं. दक्षिण में युवा मतदाताओं की संख्या काफी है. यदि युवा मतदाता उनके पक्ष में एकजुट हुए तो इसका लाभ उन्हें मिलेगा. इसके अलावा ब्राम्हण व मुस्लिम समुदाय के करीब 40 हजार वोट है. मुस्लिम आमतौर पर कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता है. ब्राह्मण इस बार अपने समुदाय से टिकिट की मांग कर रहे थे जो कांग्रेस ने पूरी कर दी. दूसरा महत्वपूर्ण कारक है राज्य में कानून-व्यवस्था की लचर स्थिति. यह आश्चर्यजनक है कि भाजपा सरकार के एक वर्ष के भीतर ही ऐसी-ऐसी आपराधिक घटनाएं घट गई हैं जो सरकार के कामकाज पर प्रश्नचिन्ह लगाती है. हालाँकि विष्णुदेव सरकार ने कार्रवाई के मामले में तत्परता दिखाई है पर कांग्रेस को उसे घेरने तथा सवाल पर सवाल खड़े करने का मौका मिल गया है. दक्षिण के प्रबुद्ध मतदाताओं पर इसका कितना असर पड़ेगा, इस बारे अनुमान लगाना मुश्किल है. किंतु यह शायद पहला उपचुनाव है जहां कांग्रेस के सभी दिग्गज नेता आंतरिक खींचतान से मुक्त होकर एकजुट नज़र आ रहे है और मैदान मारने जीतोड कोशिश कर रहे हैं.
विधान सभा के उपचुनाव अमूमन स्थानीय मुद्दों पर ही केंद्रित रहते हैं. मुख्यत: उनके क्षेत्र में नागरिक समस्याएं एवं विकास की स्थिति. 2023 के विधान सभा चुनाव में भाजपा की महतारी वंदन योजना ने पांसा पलट दिया था. अब यह योजना वोटिंग के मामले में महिलाओं को उसी तीव्रता से शायद ही प्रभावित कर पाएगी. इसलिए विशुद्ध रूप से यह चुनाव पार्टी, प्रत्याशी ,छवि तथा मूलभूत समस्याओं पर केन्द्रित है. मतदाता इस तथ्य पर भी विचार करेंगे कि रायपुर दक्षिण में नागरिक सुविधाओं से संबंधित छोटी-मोटी समस्याओं का भी निदान अब तक क्यों नहीं हुआ ? उसके मन की तैयारी पहले से ही रहती है. वे मेयर व सांसद की भूमिका में सुनील सोनी का कामकाज पहले भी देख चुके हैं जबकि आकाश शर्मा उनके लिए नया चेहरा है. समय इस बात का साक्षी है कि नया अधिक लुभाता है. चुनावी राजनीति में ऐसे अनेकानेक उदाहरण हैं जब नितांत अपरिचित को मतदाताओं ने जीता दिया है. क्या रायपुर दक्षिण में भी ऐसा ही कुछ घटित होगा ? शायद नहीं, शायद हां. सही जवाब 23 नवंबर को मतदाता दे देंगे.
साभार:दिवाकर मुक्तिबोध-(ये लेखक के अपने विचार हैं)