लाल बहादुर शास्त्री की हत्या को उजागर करती ताशकंद फाइल
- अमिताभ राजी की कलम से-
Positive India:अमिताभ राजी:
देश का #प्रधानमंत्री मरा था…….
#रहस्यमयी_मौत मरा था, उसका पूरा शरीर नीला हो गया था, उसके जिस्म पर जगहा-जगहा कटे के निशान थे, रूस की सीक्रेट एजेंसी ने उसे खाना देने वाले को अरेस्ट भी किया था, लेकिन भारत लाते ही लाल बहादुर शास्त्री की मेडिकल रिपोर्ट बदल दी गई, उसके साथ गए उसके सबसे घनिष्ठ दो लोगों की अलग-अलग कार दुर्घटनाओं में रहस्यमयी मृत्यु हो गयी, लेकिन न उसके पोस्टमार्टम की जरूरत समझी गयी और न ही किसी तरह की जाँच की……
पूरी फिल्म को दर्शक आँखें फाडकर देखता रह जाता है, आश्चर्यमिश्रित आक्रोश से जगह जगह उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं, फिल्म के अन्त तक कईयों बार उसकी आँखें नम होती हैं, और भरे मन से वो कई अनुत्तरित सवालों को लिये अपने घर वापस आ जाता है…..
कैसे एक प्रधानमंत्री जैसे सर्वोच्च पद के व्यक्ति के थर्मस और व्यक्तिगत डायरी जैसे सामान दूसरे देश में गुम हो सकते हैं….?
क्यूँ अचानक उन्हें एक सुविधा-युक्त होटल से शिफ्ट करके एक ऎसी काटेज टाइप जगहा पर ठहराया गया जहाँ बेसिक मेडिकल सुविधाओं का भी अभाव था…?
इंजेक्शन जो नस में लगाया जाना था क्यों उसे ऐसे ही लगा दिया गया…?
क्यूँ रूस की उस मेडिकल रिपोर्ट को छिपा दिया गया जिसमें उनके शरीर में जहर होने की शंका की गयी थी..?
कहाँ गया फिर वो जान मोहम्मद जिसने लाल बहादुर शास्त्री जी के व्यक्तिगत रसोइये रामनाथ के वहां उनके साथ होने के बावजूद उस दिन उन्हें खाना परोसा था…?
ये फिल्म RTI द्वारा भारत सरकार से प्राप्त सूचनाओं, रूस से प्राप्त विभिन्न वैध रिपोर्ट्स और उस समय के कुछ निर्भीक तथा कुछ डरे हुए पत्रकारों की रिपोर्ट्स पर आधारित है…..
लेकिन सच को उकेरती इस फिल्म में भी रूसी जासूस #वासिली_मित्रोखिन की किताब में जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी लिखा होने के बावजूद उस नाम को म्यूट किया जाना, आज के लोकतंत्र की स्थिति पर भी अफसोस ही कराता है….
क्या ये महज इत्तेफाक था कि जब नेहरू के सामने कोई जबरदस्त लोकप्रिय नेता अस्तित्व में आया तो उसकी रहस्यमयी मृत्यु हो गई और जब इंदिरा के सामने कोई वैसा ही देश का दुलारा आया तो वो भी वैसे ही स्क्रीन से गायब हो गया कि जनता जान भी न पाई कि आखिर हुआ क्या था 10 जनवरी 1966 की रात ताशकन्द में….?
साभार:अमिताभ राजी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)