राहुल गांधी के आरोपों की धज्जियां उड़ाती मीडिया पर कांग्रेस के कब्जे की कहानियां
राहुल गांधी को शायद "मीडिया पर कब्जे" का अर्थ नहीं मालूम।
Positive India:Satish Chandra Mishra; 6 February 2021:
मीडिया पर कब्जा इस तरह किया जाता है…
उल्लेख कर दूं कि इस पूरी पोस्ट में आपातकाल के दौरान मीडिया पर कांग्रेसी कब्जे के किसी किस्से कहानी का ज़िक्र नही है।
अब बात मुद्दे की…
तीन दिन पहले 2 मार्च को राहुल गांधी ने संस्थागत ढांचों पर कब्जा कर लेने का गम्भीर आरोप मोदी सरकार पर लेते हुए मीडिया का नाम लिया था। कल अपने उस आरोप को दोबारा दोहराते हुए राहुल गांधी ने फिर कहा कि मोदी सरकार के सामने उसका मित्र मीडिया भीगी बिल्ली बना हुआ है।
राहुल गांधी को शायद “मीडिया पर कब्जे” का अर्थ नहीं मालूम। मीडिया पर कब्जा करने का कांग्रेस का इतिहास, विशेषकर अपने खानदान का इतिहास भी राहुल गांधी ने शायद नहीं पढ़ा है या पढ़कर भूल गया है।
इसलिये इस देश में दशकों से मीडिया पर कांग्रेस के कब्जे की वो कहानी याद दिलाना बहुत जरूरी है जो राहुल गांधी के आरोपों की धज्जियां उड़ा देती है।
1990 में हुए सोवियत संघ के विखंडन के बाद उसकी खुफिया एजेंसी केजीबी के अभिलेखागार का संग्राहक (निदेशक) वासिली मित्रोखिन 1992 में उस अभिलेखागार से गोपनीय दस्तावेजों का बहुत बड़ा जखीरा लेकर भागा था। ब्रिटेन और अमेरिका समेत दुनिया के कुछ ताकतवर देशों को उसने वह गोपनीय दस्तावेज करोड़ों डॉलर में बेच दिए थे। इसके कई वर्ष बाद उन्हीं दस्तावेजों में दर्ज सूचनाओं एवं जानकारियों को वासिली मित्रोखिन ने 2005 में अपनी पुस्तक में दुनिया के सामने उजागर किया था। दो भागों वाली वासिली मित्रोखिन की किताब के 2005 में प्रकाशित दूसरे भाग (The KGB and the Battle for the Third World) में भारत से सम्बन्धित दो अध्याय भी हैं। उन्हीं दो अध्यायों में भारत की मीडिया पर कब्जे की कहानी कुछ इस तरह बयान की गयी है…
1970 के दशक में दुनिया के सबसे ताकतवर देश सोवियत संघ की सबसे ताकतवर ख़ुफ़िया एजेंसी केजीबी के जो जासूस भारत में सक्रिय थे उन्होंने केजीबी के अति गोपनीय दस्तावेजों में भारत की तत्कालीन मीडिया के बारे में जो गोपनीय सूचनाएं दर्ज की थीं उनमें यह शर्मनाक सच लिखा था कि… 1973 से भारत के दस बड़े अखबारों को रूस की ख़ुफ़िया एजेंसी केजीबी नियमित रूप से एक मोटी रकम दे रही थी।(न्यूजचैनलों का उस दौर में कोई अस्तित्व ही नहीं था) उस दौरान केजीबी ने 1973 से 1975 की समयावधि में उन अखबारों में कांग्रेस और इंदिरा गांधी के पक्ष में 17000 से अधिक खबरें छपवायी थीं। उस समय भारत का एक सर्वाधिक नामी गिरामी पत्रकार/संपादक केजीबी द्वारा उसे दी जा रही मोटी रकम के बदले में देश के उन 10 बड़े अखबारों और पत्रिकाओं में अमेरिका के ख़िलाफ़ जमकर जहर उगलते लेख लिखा करता था। भारत मे अमेरिका के ख़िलाफ़ तथा रूस के पक्ष में और इंदिरा गांधी तथा कांग्रेस के समर्थन में वातावरण बनाने में जुटा रहता था।
केजीबी के उन्हीं गोपनीय दस्तावेजों में यह गोपनीय सूचना भी दर्ज थी कि तत्कालीन सत्तारूढ़ दल कांग्रेस के दो दर्जन सांसदों समेत तत्कालीन कांग्रेस सरकार के 4 कैबिनेट मंत्री भी केजीबी के एजेंट के रूप में सक्रिय थे और मोटी रकमों के बदले में केजीबी को महत्वपूर्ण गोपनीय सूचनाएं पहुंचा रहे थे। स्थिति इतनी बदतर थी कि केजीबी के तत्कालीन मेजर जनरल ओलेग कलिगुनिन ने भारत से सम्बन्धित केजीबी की अपनी गुप्त रिपोर्ट में यह यह लिखा था कि… ऐसा लगता है कि मानो पूरा देश बिकने को तैयार खड़ा हुआ है। (“It seemed like the entire country was for sale…)
लेकिन मीडिया पर कांग्रेस के कब्जे की यह दास्तान इतने पर ही खत्म नहीं होती।
1973 से 1975 तक देश के मीडिया पर खतरनाक कब्जे की इस भयानक कहानी के तत्काल बाद ही पौने दो साल लम्बा वो दौर शुरू हुआ था जब मीडिया की आजादी पर कब्ज़ा नहीं किया गया था बल्कि उसकी आजादी को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया था। लेकिन उसका जिक्र आज नही।
1987 में सोनिया गांधी के निकटतम गहरे इटैलियन दोस्त क्वात्रोची द्वारा देश के खजाने से की गई करोड़ों रूपये की बोफोर्स लूट का सच छापने वाले अखबार इंडियन एक्सप्रेस के कार्यालय की बिजली पानी काट दिए गए थे। अखबार के मालिक रामनाथ गोयनका के घर और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों पर CBI ED के छापो की झड़ी लगा दी गयी थी। उस लूट का सच उजागर करने वाले पत्रकार एस गुरुमूर्ति को जेल में डाल दिया गया था। उस बोफोर्स लूट के तथ्य कई देशों से इकट्ठा करने वाली रिपोर्टर चित्रा सुब्रमण्यम की गिरफ्तारी के लिए कांग्रेसी सरकार ने धरती आकाश एक कर दिया था। वो एक दशक तक भारत नहीं आ सकी थीं। जब यह सब हुआ तब राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी इस देश के प्रधानमंत्री थे।
2004 से 2009 तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने 2014 में प्रकाशित अपनी किताब “एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर” के पन्ना नम्बर 252 में लिखा है 22 जुलाई 2008 को प्रधानमंत्री कार्यालय से सम्बद्ध मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने न्यूजचैनल CNN IBN के तत्कालीन एडिटर इन चीफ राजदीप सरदेसाई को फोन कर एक स्टिंग ऑपरेशन नहीं दिखा ने का आदेश दिया था। उस एक फोन पर राजदीप सरदेसाई “यस सर” वाली मुद्रा में सहमत हो गया था। उस स्टिंग ऑपरेशन को नहीं दिखा कर स्वतंत्र भारत के इतिहास में हुई लोकतंत्र की सबसे बर्बर लूट “वोट फ़ॉर कैश” के सच पर राजदीप सरदेसाई ने पर्दा डाल दिया था। यह वह दौर था जब देश की सरकार राहुल गांधी की मम्मी सोनिया गांधी के इशारों पर हिलती डुलती थी। उस सरकार के बनाए कानून को राहुल गांधी फाड़ कर फेंक दिया करता था।
अंत में इतना याद दिला दूं कि मीडिया की आजादी पर कांग्रेसी कब्जे की कहानी आजादी के तत्काल बाद ही तब से शुरू हो गयी थी जब मजरूह सुल्तानपुरी को नेहरू ने 1949 में दो साल के लिए जेल में इसलिए बंद करा दिया था क्योंकि मजरुह सुल्तानपुरी ने नेहरू के खिलाफ एक गीत लिख दिया था।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-एफबी(ये लेखक के अपने विचार)