Positive India:Vishal Jha:
मैं स्वयं भी कभी इस बात से इत्तफाक नहीं रखता कि भारत का विभाजन गांधी ने किया। गांधी किसी प्रकार से विभाजन के असल जिम्मेवार भी नहीं। लोग भी गांधी को विभाजन के लिए जिम्मेदार लाचारी बस ही ठहराते हैं। क्योंकि भारत में उस समय गांधी का जो कद था, भारत को भरोसा था कि किसी प्रकार गांधी भारत को विभाजित होने नहीं देंगे। स्वयं गांधी ने भी कहा था कि भारत का विभाजन मेरी लाश पर से होकर होगा। इस वचन के बावजूद भी भारत का विभाजन गांधीजी जीते जी स्वीकार कर लिए, एक धरना तक भी नहीं दिए। हर बात पर धरना पर बैठ जाने वाले गांधी भारत के टुकड़े करने की कीमत पर सत्ता हस्तांतरण स्वीकार कर लिए।
भारत के विभाजन का असल जिम्मेदार जिहाद है। भारत में जिहाद की तमाम चुनौतियां आज भी मौजूद है। फिर जब जब यह चुनौतियाँ भारत के सामने आता है, भारत पलटकर 47 का इतिहास देखता है और गांधी नजर आते हैं। फिर जब गांधी नजर आते हैं तब भारत फिर एक बार बंटता नजर आता है। यहीं पर यह देश मजबूर हो जाता है। और गांधी को भला बुरा कहने लगता है। यदि 47 वाली जिहाद की समस्या भारत के भविष्य में कभी उत्पन्न ना होती तो गांधी कभी इस देश में खलनायक नहीं बन पाते। लोगों को यहां गांधी के आदर्श पर चलते हुए फिर एक बार टूटता हुआ भारत नजर आने लगता है। लोग सवाल करते हैं गांधी को पूजने वालों से, विभाजन प्रक्रिया में गांधी ने मुसलमानों का पूर्ण विस्थापन क्यों नहीं होने दिया?
गांधी की कुल मिलाकर एक उपलब्धि कि उन्होंने भारत के राजनीतिक चेतना को राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत स्वरूप प्रदान किया। लेकिन भारत ने इसके लिए जो कीमत चुकाया, भारत जब उस पर मूल्यांकन करता है, तो ठगा हुआ महसूस करता है। ऐसा लगता है गांधी इस देश के लिए एक घाटे का सौदा रहे। उनकी इस महानता के नीचे न जाने भारत के कितने कितने महान विभूतियां सदा के लिए दफन हो गए। कहा जाए तो भारत की तमाम राजनीतिक मेधा बर्बाद हो गई। सुभाष जैसी शख्सियत को खोकर हमने भारत के असली राष्ट्रवाद को खो दिया। यदि गांधी की जिद्द ने सुभाष की क्रांति का दमन न किया होता तो भारत के विनिर्माण से लेकर संविधान और कानून एक झटके में स्वदेशी हो जाता। जिसका सपना आज नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत देख रहा है। और बड़ा धीरे-धीरे बदलाव हो पा रहा है।
संभव है, गांधी की महानता यदि सुभाष बाबू को निगल न गया होता तो भारत आज संभवत: विश्व के ऐसे विकसित देशों के समकक्ष होता जिसके बारे में लोग कहते हैं कि वह भी भारत के साथ ही आजाद हुआ था। भारत आज अगर उनके समकक्ष नहीं है तो कहीं ना कहीं भारत की गांधी वाली जैसी आजादी पर ही प्रश्न है। यहीं पर एक हाइपोथेटिकल बड़ा जायज प्रश्न उठता है कि क्या होता है यदि गांधी पैदा ही न लिए होते?
वैसे भी भारत की आजादी में निर्णायक योगदान गांधी जी का था भी नहीं। सुभाष बाबू के प्रयास से जो नौसेना विद्रोह उठा, उस पर गांधीवादियों ने आजादी का अपना लेवल लगाकर सत्ता का बस हस्तांतरण कर लिया। उसके बाद गांधी के नाम पर जिस प्रकार से ब्रांडिंग शुरू हुई, अतिशयोक्ति ही कहा जाएगा। इसी अतिशयोक्ति का नतीजा है कि आज गांधी को लोग नकार रहे हैं। और गांधी के खिलाफ जो विमर्श शुरू हुआ है इतिहास के तमाम तथ्यों से उस नकार को मजबूती भी मिल रही है। सोशल मीडिया का यह विमर्श जैसे लग रहा मेंस्ट्रीम मीडिया में आने को आतुर है। जिस दिन किसी मेंस्ट्रीम खुले मंच से एक बार गांधी के खिलाफ विमर्श बैठ गया, तो फिर यह गांधी की ब्रांडिंग समाप्त करके ही दम लेगा। और गांधीजी के स्थान को भरने के लिए सुभाष चंद्र बोस को भारत ने स्वीकार करना आरंभ कर दिया है।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)