मिल्खा सिंह की वह गलती हमें हमेशा सीख देगी
फ्लाइंग सिक्ख के नाम से विख्यात मिल्खा सिंह की मृत्यु का समाचार सुनकर मन आज उदास हो गया।
Positive India:Satish Chandra Midhra:
फ्लाइंग सिक्ख के नाम से विख्यात मिल्खा सिंह की मृत्यु का समाचार सुनकर मन आज उदास हो गया। मैं उस पीढ़ी का सदस्य हूं जिसने मिल्खा सिंह को किसी फिल्म के जरिए नहीं जाना पहचाना था। इसके बजाए मेरी पीढ़ी मिल्खा सिंह की कीर्तिगाथा पढ़ते, कहते सुनते हुए जवान हुई थी। 70 के दशक में किशोरावस्था से युवावस्था की तरफ कदम बढ़ाती मेरी पीढ़ी के लिए खेल की दुनिया में नायक तो कई थे लेकिन महानायक केवल 2 थे। पहले थे मेजर ध्यानचंद और दूसरे थे मिल्खा सिंह।
मिल्खा सिंह ने अपने खेल जीवन के चरम को रोम ओलंपिक में छुआ था। उस ओलंपिक में 400 मीटर की दौड़ में मिल्खा सिंह चौथे स्थान पर रहे थे। लेकिन मिल्खा सिंह को मिले उस चौथे स्थान का महत्व आप इस बात से समझ सकते हैं कि ओलंपिक के अबतक के इतिहास की वह अकेली ऐसी दौड़ है जिसमें प्रथम चार स्थान पाने वाले धावकों ने पिछला विश्व रिकार्ड तोड़ दिया था। इलेक्ट्रॉनिक घड़ी तीसरे स्थान पर रहे स्पेंस तथा चौथे स्थान पर रहे मिल्खा सिंह का समय एक ही बता रही थी। अतः फोटो के माध्यम से तीसरे स्थान का फैसला हुआ और मिल्खा सिंह को चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा था। लेकिन पूरी दुनिया में उस दौड़ की धूम मच गयी थी। खेलप्रेमियों विशेषकर एथलेटिक्स में रुचि रखने वालों के लिए वह दौड़ आज भी चर्चा का केन्द्र बनती रहती है।
उस दौड़ में मिल्खा सिंह ने एक बहुत बड़ी गलती कर दी थी। उस गलती का मलाल मिल्खा सिंह को जीवन भर रहा। आज उन्होंने जब अंतिम सांस ली होगी तब भी उन्हें अपनी वह गलती जरूर याद आयी होगी। मिल्खा सिंह ने यदि वह गलती नहीं की होती तो उस दौड़ में उन्हें चौथा स्थान नहीं बल्कि उस दौड़ का स्वर्णपदक उन्हें ही मिला होता। उस दौड़ के दौरान मिल्खा ने एक स्पिलिट सेकेंड के लिए पीछे आ रहे अपने प्रतिद्वंदियों को देखने की कोशिश की थी, जिससे उनका प्रवाह टूट गया था। मिल्खा ने अपने अनेक साक्षत्कारों में खुद बताया था कि, “मेरी ये आदत पड़ चुकी थी कि चाहे एशियन खेल हो या राष्ट्रमंडल खेल हों, मैं पीछे मुड़ कर देखता था कि एथलीट मुझसे कितना पीछे दौड़ रहा है. रोम में भी मैंने पीछे मुड़ कर देखा था जिससे मेरी रफ्तार पर काफ़ी फ़र्क पड़ा था.”
60 और 70 के दशक में कई वर्षों तक मिल्खा सिंह की उस गलती की चर्चा खेलपत्रिकाओं में होती रही थी। अपनी उस गलती से भारतीय खेल जगत का वह निर्विवाद महानायक हमेशा के लिए यह सीख और संदेश दे गया है कि दौड़ चाहे खेल के मैदान में हो या फिर जिंदगी के मैदान में, दौड़ते समय कभी पीछे मुड़ कर मत देखना।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा।