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जम्मू कश्मीर की सत्ता के सारे पेंच और पेचीदगी तो परिसीमन में ही छुपी हुई है।

जम्मू कश्मीर में खुलेआम होते रहे राजनीतिक चुनावी कुकर्म का विश्लेषण।

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Positive India:Satish Chandra Mishra:
संविधान के अनुसार परिसीमन की प्रक्रिया प्रत्येक दस वर्ष के अंतराल पर की जाती है। लेकिन जम्मू कश्मीर में लोकसभा और विधानसभा की सीटों का परिसीमन 28 साल पहले 1995 में किया गया था।
अगला परिसीमन 2005 में होना था, लेकिन 2002 में, फारूक अब्दुल्ला सरकार ने जम्मू और कश्मीर प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1957 और जम्मू और कश्मीर के संविधान की धारा 47 (3) में संशोधन करके परिसीमन को 2026 तक के लिए रोक दिया था। अब्दुल्ला सरकार ने यह प्रावधान किया था कि ‘वर्ष 2026 के बाद पहली जनगणना के लिए प्रासंगिक आंकड़े जब तक प्रकाशित नहीं हो जाते, तब तक राज्य की विधान सभा और लोकसभा की सीटों का कोई परिसीमन नहीं होगा। यानि अब्दुल्ला ने परिसीमन को 36 बरस तक के लिए टाल दिया था।
अब्दुल्ला की इस करतूत का कारण भी अब कुछ तथ्यों के माध्यम से समझिये।
2019 के लोकसभा चुनाव में कश्मीर घाटी में कुल 40,01,388 वोटर थे और वहां लोकसभा की 3 सीटें थीं। अर्थात वहां औसतन 13.34 लाख वोटर प्रति लोकसभा सीट पर थे। जबकि जम्मू क्षेत्र में कुल 3712941 वोटर थे और वहां लोकसभा की 2 सीटें थीं। अर्थात वहां औसतन 18.56 लाख वोटर प्रति लोकसभा सीट पर थे। कश्मीर की तुलना में जम्मू क्षेत्र की लोकसभा सीटों पर औसतन 5.22 लाख वोटर प्रति सीट अधिक थे। इसी तरह विधानसभा की जो 46 सीटें कश्मीर घाटी में हैं उनमें प्रति सीट वोटरों की औसत संख्या 86.98 हजार है। जबकि जम्मू क्षेत्र की 37 विधानसभा सीटों पर प्रति सीट वोटरों की औसत संख्या 1.03 लाख है। हद तो यह है कि कश्मीर घाटी का क्षेत्रफल भी 15948 वर्ग किलोमीटर है जबकि जम्मू क्षेत्र का क्षेत्रफल 26293 वर्ग किलोमीटर है। यानि कश्मीर घाटी में एक विधानसभा सीट का औसत क्षेत्रफल लगभग 347 वर्ग किलोमीटर है। जबकि जम्मू क्षेत्र में एक विधानसभा सीट का औसत क्षेत्रफल लगभग 710 वर्ग किलोमीटर है। अर्थात कश्मीर घाटी के विधानसभा क्षेत्र से लगभग 105% अधिक। इसी तरह कश्मीर घाटी में एक लोकसभा क्षेत्र ,का औसत क्षेत्रफल लगभग 5.32 हजार वर्ग किलोमीटर है। जबकि जम्मू में एक लोकसभा क्षेत्र ,का औसत क्षेत्रफल लगभग 13.15 हजार वर्ग किलोमीटर है। अर्थात कश्मीर घाटी के लोकसभा क्षेत्र से लगभग 147% अधिक।
ध्यान रहे कि लोकसभा या विधानसभा सीटों के परिसीमन में सीटों के क्षेत्रफल की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। फिर वोटरों की संख्या महत्वपूर्ण होती है।
उपरोक्त दोनों तथ्य यह बता रहे हैं कि जम्मू कश्मीर में सीटों के परिसीमन के नाम पर किस प्रकार की धांधली मनमानी होती रही है। आजादी के बाद से जम्मू कश्मीर राज्य में खुलेआम होते रहे इस राजनीतिक चुनावी कुकर्म के लिए अनुच्छेद 370 रक्षा कवच का काम करता रहा।
अब 26 साल बाद इस कुकर्म के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई है। इसीलिए गुपकार गैंग तिलमिलाया बिलबिलाया हुआ है। आज की मीटिंग में गैंग को परिसीमन के संबंध में साफ शब्दों में संदेश भी सम्भवतः दे दिया गया है। इस नसीहत के साथ कि बहकना मत।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा(ये लेखक के अपने विचार है)

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