www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

प्रेम के जाल में फंसा कर छल किये जाने का क्रूरतम अत्याचार दर्शाती है “द केरल स्टोरी”

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

laxmi narayan hospital 2025 ad

Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
फ़िल्म अच्छी हो सकती है, फ़िल्म बुरी भी हो सकती है, फ़िल्म बकवास भी हो सकती है, पर कुछ फिल्मों को केवल इसलिए देख लिया जाना चाहिये कि ‘अपने हित के लिए बार बार देश विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाने वाली फिल्म इंडस्ट्री’ में कुछ दुर्लभ लोग हमारे-आपके पक्ष में बोलने का साहस कर रहे हैं। उन्हें निर्बल नहीं होने देना है, उन्हें साहस देते रहना है।
कुछ विषयों पर आप चाह कर भी मौन नहीं हो सकते, आपको पक्ष चुनना ही होता है। आपका मौन आपको दूसरे पक्ष का योद्धा बना देता है। जब आप धर्म के साथ नहीं होते तो स्पष्ट रूप से अधर्म के ही साथ होते हैं।
हिन्दू बेटियों के साथ ‘प्रेम के जाल में फंसा कर छल किये जाने’ का क्रूरतम अत्याचार पूरे देश में पसरा हुआ है। आप अपने आसपास ही आँख उठा कर देख लीजिये, कुछ घटनाएं अवश्य दिख जाएंगी।
इसमें कुछ भी नया नहीं है। पश्चिम से आने वाले बर्बर आतंकी भारत में विजयी होने के बाद यहाँ की स्त्रियों बालिकाओं के साथ कैसा राक्षसी व्यवहार करते थे, यह इतिहास की किताबें रो-रो कर बताती रही हैं। यहाँ से स्त्रियों-बच्चियों को जबरन गुलाम बना कर अरब ले जाने की घटनाएं भी असँख्य बार हुई हैं। यह प्रेम के नाम पर फुसला फंसा कर वेश्यावृत्ति में धकेल देने वाला संगठित आक्रमण भी उसी बर्बर मानसिकता की उपज है। आप इसे नकार नहीं सकते, आपको यह मानना ही होगा।
संसार की इस प्राचीनतम सभ्यता ने हर युग में आतंक का चरम देखा है, पीड़ा का पहाड़ भोगा है। उसके साथ की सभ्यताएं जाने कब की समाप्त हो गईं, पर सनातन पुष्पित-पल्लवित है। जानते हैं क्यों? क्योंकि बाकी सभ्यताएं केवल सेना के स्तर पर लड़ती थीं, हम सेना और समाज दोनों स्तरों पर लड़ते रहे। हमारी सेना कभी कभी पराजित भी हुई, पर समाज कभी पराजित नहीं हुआ। लोग बर्बरों का तिरस्कार करते रहे, उन्हें स्वयं से दूर रखते रहे। चार दिन भूखे प्यासे रह जाते, पर किसी अधर्मी का छुआ पानी नहीं पीते… समाज और व्यक्ति के स्तर की यह दृढ़ता ही सनातन के अजर अमर होने का मूल कारण है।
अपने धर्म, अपनी सभ्यता, अपनी परम्परा के प्रति यह दृढ़ता पिछले कुछ दशकों में कम अवश्य हुई है। पर पिछला दशक वापस वही दृढ़ता प्राप्त करने का दशक रहा है। हम पुनर्नवा हैं। बार बार सूखते हैं, पर हर बार हरे हो जाते हैं।
सिर्फ चार वर्ष पूर्व ही जब परत लिख रहा था तो कहा गया कि यह फर्जी नैरेटिव है। ऐसा नहीं होता… हालांकि सब जानते थे कि ऐसा होता है और पूरे देश में होता है। पर इस विषय पर हर ओर एक नकारात्मक चुप्पी थी। आज मात्र चार वर्ष बाद इस विषय पर हिन्दी में तीन उपन्यास लिखे गए हैं, और दो बड़ी फिल्में आ चुकी हैं। स्पष्ट है कि लोग मुखर हो रहे हैं, इस अत्याचार का प्रतिरोध कर रहे हैं। यह सुखद है, सकारात्मक है।
भरोसा रखिये, दिन सुधरेंगे। ऐसे ऐसे राक्षसी प्रहारों को इस देश ने हजार बार ठोकरों से उड़ाया है। पर यह होगा आपकी सतर्कता से, आपकी जागरूकता से, आपकी दृढ़ता से… इन विषयों पर जब भी कोई बोले तो उसे बल दीजिये। फ़िल्म देख सकें तो देखिये, न देख सकें तो अपनी चर्चाओं में इस विषय को लाइये… आप विजयी होंगे। समाज अपने हिस्से का युद्ध यूँ ही लड़ता है…

सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार है)
गोपालगंज, बिहार।

Leave A Reply

Your email address will not be published.