ॐकारेश्वर महादेव जिस पर्वत पर विराजमान है उसे ॐ का भौतिक विग्रह क्यो कहा जाता है?
- सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-
Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
ओंकारेश्वर महादेव जिस स्थान पर विराजमान हैं, वह स्थान अत्यंत प्राचीन काल से ही ही भील वनवासियों के अधिकार में रहा है। ईसा से लगभग हजार वर्ष पूर्व से लेकर दसवीं-ग्यारहवीं सदी तक तो वहाँ के राजा भील ही रहे हैं। फिर वहाँ विदेशी आये, फिर मुगलों का अधिकार हुआ। भीलों के हाथ से सत्ता चली गयी, पर उनका प्रभाव कभी कम नहीं हुआ। तो यह मान कर चलिये कि अत्यंत प्राचीन काल से ही भगवान शिव के इस चौथे ज्योतिर्लिंग मन्दिर की व्यवस्था भील वनवासियों के हाथ में रही है।
विविधताओं से भरे हिन्दू समाज में हर जाति, सम्प्रदाय की अपनी कुछ विशेष पूजा पद्धति रही है। इस तरह भीलों की पूजा पद्धति भी तनिक अलग है। पर उनकी परम्परा में भी भगवान शिव की पूजा प्रमुखता से होती रही है। भगवान भोलेनाथ सबके हैं। शिवलिंग की पूजा के प्रमाण तो लगभग समस्त प्राचीन सभ्यताओं में मिलते हैं।
ओंकारेश्वर महादेव नर्मदा नदी की धारा के मध्य बने एक टापू, जिसे मान्धाता द्वीप कहते हैं, पर अवस्थित हैं। ओंकारेश्वर महादेव की कथा राजा मान्धाता से जुड़ती है, इसी कारण उस द्वीप का नाम मान्धाता द्वीप है। कथा है कि राजा मान्धाता ने उस स्थान पर भोलेनाथ की कठिन तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न हो कर भगवान ने उन्हें दर्शन दिया और संसार के कल्याण के लिए वहीं ज्योतिर्लिंग स्वरूप में स्थापित हो गए।
मान्धाता इच्छवाकु वंश के सम्राट थे। त्रेता युग उन्ही के काल में प्रारम्भ हुआ था। तो इस तरह भगवान भोलेनाथ के दो ज्योतिर्लिंग की कथा भगवान राम के कुल से जुड़ी हुई है। एक ओंकारेश्वर महादेव और दूसरे रामेश्वरम महादेव।
ॐकारेश्वर महादेव जिस पर्वत पर विराजमान हैं, उसे ॐ का भौतिक विग्रह कहा जाता है। भौतिक विग्रह, अर्थात प्राकृतिक रूप से बनी मूर्ति! ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस पर्वत का आकार ही ॐ के जैसा है। ओंकारेश्वर महादेव का शिवलिंग भी स्वयम्भू है, अर्थात पूर्णतः प्राकृतिक। अर्थात यहाँ की समूची व्यवस्था प्रकृति द्वारा निर्मित की गई है। अब जहाँ प्रकृति स्वयं देवस्थान निर्मित करती हो, वहाँ कौन न शीश झुकाए भला?
ओंकारेश्वर में एक बात और महत्वपूर्ण है कि यहाँ भगवान शिव दो ज्योतिस्वरूप में पूजे जाते हैं। एक ओंकारेश्वर और दूसरे ममलेश्वर। दोनों ही लिंगों को ज्योतिर्लिंग माना जाता है, पर द्वादश ज्योतिर्लिंग की गिनती में इन्हें एक ही गिना जाता है। ऐसा क्यों है? तो यह जानकारी आप ढूंढिये! और हमें भी बताइये। हाँ एक बात मैं बता दूँ, ममलेश्वर मन्दिर का जीर्णोद्धार भी राजमाता अहिल्याबाई होल्कर जी ने ही कराया था। कभी कभी लगता है, जैसे स्वयं भगवती आईं थी अहिल्या के रूप में… कोई और क्या ही करेगा जो वे कर गयीं।
वैसे एक बात और! इस मंदिर में भी दुष्टों ने तोड़फोड़ मचाई थी। सोचिये तो, किस दुष्ट ने किया होगा ऐसा..? बाकी राक्षसी उत्पात से धर्म समाप्त नहीं होता। और कलियुग में तो यूँ भी माना गया है कि धर्म एक चौथाई ही रह जाना है, तो उत्पात तो होगा ही…
खैर! सावन का सोमवार है, तो जहाँ हैं वहीं से ओंकारेश्वर महादेव को प्रणाम करें, और सम्भव हो तो कर आएं दर्शन… हर हर महादेव।
साभार-सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार है)
गोपालगंज, बिहार।