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लालू के जंगल राज से डरने वाली लड़की अब यूक्रेन में वार रिपोर्टिंग कर रही

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
बिहार की यह स्त्री जब लड़की थी तब बिहार के जंगल राज में इतनी भयभीत थी कि घर की छत पर जाने में भी डरती थी। आज रुस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन से युद्ध की रिपोर्टिंग कर रही है। तोप , गोला , बारुद और मिसाइलों के बीच बिना डरे रिपोर्टिंग करना चुनौतीपूर्ण काम है। नीतीश कुमार जब मोदी विरोध में भाजपा से पगहा तुड़ा कर फिर से लालू प्रसाद यादव के साथ गठबंधन कर मुख्य मंत्री बने थे तो नीतीश कुमार से एक इंटरव्यू में इस लड़की ने लालू के जंगल राज की याद करते हुए एक सवाल पूछा था , कि घर से बाहर निकलना तो दूर , उन दिनों घर की छत पर भी हम मारे डर के नहीं जाते थे। क्या गारंटी है कि वह जंगल राज फिर नहीं लौटेगा।

यह सवाल पूछते हुए यह लड़की पत्ते की तरह कांप रही थी। आवाज़ लरज रही थी। नीतीश कुमार ने आश्वस्त करते हुए कहा था , कि ऐसा कुछ फिर नहीं होने वाला है। हुआ भी नहीं। यह वही दिन थे जब चंदन और चंदन पर लिपटे सांप , भुजंग की चर्चा आम थी। लेकिन नीतीश कुमार ने जंगल राज के राजा से जल्दी ही छुट्टी ले ली। पर यक़ीन नहीं होता कि लालू के जंगल राज में घर की छत पर जाने से डरने वाली वह लड़की आज यूक्रेन में वार रिपोर्टर बन कर उपस्थित है।

रिपोर्टिंग और एंकरिंग के कई सोपान पार करने वाली यह लड़की जो अब मुकम्मल स्त्री बन चुकी है , इस श्वेता सिंह का हर काम मुझे बहुत भाता है। पटना वुमेंस कालेज से पढ़ कर निकलीं 45 वर्ष की श्वेता सिंह अपनी रिपोर्टिंग और एंकरिंग में कभी लाऊड नहीं होतीं। कभी बिखरती नहीं। बहकती नहीं। बेशऊर नहीं होतीं। चीख़ती-चिल्लाती नहीं। स्त्री सुलभ शालीनता और मर्यादा का सतत पालन करती हुई श्वेता सिंह की सक्रियता मुझे मोहित करती है। श्वेता के बारे में कभी कोई विवाद भी अभी तक सुनने को नहीं मिला। कभी कोई एजेंडा भी नहीं परोसती दिखती हैं। दिन है तो दिन , रात है तो रात बताती हैं।

हर रंग में श्वेता को देखते रहने की आदत सी हो गई। होली हो , राजनीति हो , संगीत हो और अब युद्ध। हर बार ताज़ा हवा का झोंका बन कर दिखती हैं। सर्वदा मुस्कुराती हुई। बच्चों की तरह , फूल की तरह मुस्कुराती हुई। उन में हरदम एक बच्ची बैठी दिखती है। फिगर मेनटेन रख कर वह अपनी मोहकता में इज़ाफ़ा भरती हैं। श्वेता की ताज़ी ज़िम्मेदारी यूक्रेन की वार रिपोर्टिंग है। यूक्रेन में , उन की निडरता और स्वाभाविकता ने फिर मन मोह लिया है। श्वेता की रिपोर्टिंग बताती है कि वह यूक्रेन-रुस ही के बारे में ही नहीं , यूरोप , अमरीका और नाटो के बारे में भी पूरी जानकारी रखती हैं। पूरी स्टडी कर के गई हैं। हवा-हवाई रिपोर्टिंग नहीं कर रही हैं। युद्ध और युद्ध का मनोविज्ञान भी वह जानती हैं। चीन विवाद में लद्दाख सीमा पर भी दिखी थीं। कश्मीर में भी। कई बार। लेकिन यूक्रेन में तो ग़ज़ब ! न्यूज़ चैनलों में श्वेता सिंह जैसी निर्भीक , निडर और शालीन स्त्रियां बहुत ज़रुरी हैं।

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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