Positive India:दयानंद पांडेय:
पश्चिम बंगाल में इन दिनों जय श्री राम फिर से मुहब्बत और नफ़रत के केंद्र में है। अस्सी के दशक में भाजपा ने जय श्री राम का नारा उठाया था। कांग्रेस और वामपंथी इस जय श्री राम नारे से इतना कुढ़े और भड़के कि जल-भुन कर ख़ाक हो गए। स्वाहा हो गए। जय श्री राम से उन की नफ़रत ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। अब पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी जय श्री राम सुनते ही ऐसा भड़कती हैं जैसे लाल कपड़ा देख कर सांड़। लेकिन सवाल यह है कि जय श्री राम नारा आया कहां से ? क्या भाजपा और संघ इस जय श्री राम की प्रणेता है ? जी , बिलकुल नहीं।
सच तो यह है कि तब कांग्रेस का शासनकाल था और तब दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक से यह जय श्री राम का नारा निकला। धारावाहिक था , रामानंद सागर निर्देशित रामायण। रामायण में ही अकसर हनुमान जी या वानर सेना रावण से युद्ध के समय राम के पराक्रम को देखते हुए उद्घोष करती रहती थी , जय श्री राम ! भाजपा ने इस उद्घोष को अपना नारा बना लिया। ठीक वैसे ही जैसे कभी महात्मा गांधी राम राज्य की कल्पना करते रहते थे। राम का बखान करते रहते थे। गांधी का राम राज्य का सपना भले फलीभूत नहीं हुआ पर भाजपा को जय श्री राम का नारा फलीभूत हो गया है। पश्चिम बंगाल में भी जय श्री राम फलीभूत होता दिख रहा है।
वास्तविकता यह है कि राम भारत के जन-गण-मन में भीतर तक बसे हुए हैं। मोहम्मद इक़बाल तक जो भले मुस्लिम लीग और पाकिस्तान के संस्थापकों में से थे पर राम को इमामे हिंद मानते और लिखते थे। लेकिन कांग्रेस और वामपंथी या अन्य भी कुछ राजनीतिक दल सेक्यूलरिज़्म के जोश में , होश गंवा कर राम से नफ़रत करने का पाठ पढ़ने-पढ़ाने में लग गए। जनता-जनार्दन से दिन-ब-दिन कटते गए। कटते ही जा रहे हैं। ममता बनर्जी इस हवन की नई समिधा हैं।
साभार:दयानंद पांडेय-एफबी(ये लेखक के अपने विचार हैं)