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रामचरितमानस के खिलाफ बिहार के शिक्षा मंत्री की आपत्तिजनक टिप्पणी ने जातिवाद का जहर घोला

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
“आइए न हमरा बिहार में, ठोक देंगे कट्टा कपार में” यह साउंडट्रेक है बिहार में एक घटना पर बनी वेब सीरीज का। घटना भले ’90 अथवा इसके बाद के दशक का हो, जिसमें बाभन-बनिया को केवल सवर्ण होने के कारण पंक्ति में खड़ा कर गोलियों से भून दिए जाने की घटना है, जातिवाद का वह जहर आज भी उसी प्रकार बना हुआ है।

रामचरितमानस के खिलाफ बिहार के शिक्षा मंत्री ने सरकारी ऑफिशियल कार्यक्रम में जिस प्रकार आपत्तिजनक टिप्पणी की है, एक बिहारी होने के नाते मुझे शर्म है कि हमने एक ऐसी सरकार बनाई है जिसका शिक्षा मंत्री अपने सूबे की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने का काम नहीं करता है, रामचरितमानस को जलाने की बात करता है। जातिवाद का जहर संप्रदायिकता से भी ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि तमाम सांप्रदायिक राजशक्तियों ने जो भी कहा हो, लेकिन रामचरितमानस को जलाने की बात करने की हिम्मत नहीं की।

जातिवाद की इस मानसिकता को पोषित करने के लिए बिहार आज भी काम कर रहा है। बिहार में जाति जनगणना की प्रक्रिया चल रही है। वह भी बिना विधानमंडल की आज्ञा के। राजनीतिक तौर पर बिहार को ’90 वाली दशक दोहराने के लिए एक बार फिर तैयार किया जा रहा है। नए भारत के राष्ट्रवादी विमर्श को धन्यवाद देना चाहता हूं कि तमाम नफरत के बावजूद भी बिहार अब जातिवादी कट्टा उठाने को तैयार नहीं हो रहा है। खबर है कि जाति जनगणना के लिए लोग अपनी जाति बताने को तैयार नहीं हैं, स्वयं को भारतीय बता रहे हैं।

रही बात रामायण के उन पंक्तियों की, जिनको लेकर दलित विमर्श की राजनीति को साधने का प्रयास किया जाता है, निश्चित तौर पर इसे समीक्षा का विषय बनाना चाहिए। उत्तर रामायण स्वयं सनातन समाज में आचार्यों के बीच मतभेद का विषय रहा भी है। बात शंबूक वध की हो अथवा किसी अन्य बिंदुओं पर, सनातन समाज को खुलकर दलित विमर्श को एड्रेस कर लेना चाहिए। एकतरफा टाल मटोल का कोई फायदा नहीं है।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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