हल्दीघाटी का युद्ध! प्रताप अब भी जी रहे हैं। वे हमेशा जिएंगे…
-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-
Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
हल्दीघाटी का युद्ध! हर क्षण कुछ शीश कट कर भूमि पर गिर रहे थे। युद्धभूमि की मिट्टी रक्त से भीग कर कींचड़ हो गयी थी। इस कीचड़ में जब घोड़ों के पैर पड़ते तो छपाक की ध्वनि के साथ रक्त ऊपर उड़ता और अनेक सैनिकों के माथे पर शौर्य का तिलक लगा जाता। भारत अपने स्वाभिमान का युद्ध लड़ रहा था।
शाम होने जा रही थी। सुबह से यमराज की तरह लगातार शत्रु दल को काट रहे महाराणा अपने शरीर पर असंख्य घाव लेकर थकने लगे थे। तलवार की तेजी कम होने लगी थी, भाले का कहर थमने लगा था। लग रहा था जैसे राणा शिघ्र ही वीरगति… तभी पीछे से राणा के बगल में आ कर एक सरदार ने धीरे से कुछ कहा। राणा का भारी स्वर गूँजा- यह सम्भव नहीं सरदार! अपना कर्म करो, शेष ईश्वर पर छोड़ दो।
सरदार का स्वर तेज हुआ, “नहीं छोड़ सकता हुकुम! महाराणा प्रताप हमारे समय की प्रतिष्ठा का नाम है। आपके रगों में आपका रक्त नहीं भारत का स्वाभिमान बहता है महाराज! इसकी रक्षा करनी ही होगी.. आप जीये तो हमारा स्वाभिमान जियेगा, स्वतंत्रता की भूख जियेगी, धर्म का ध्वज जियेगा। इसके लिए एक क्या, हजारों झाला सरदार बलिदान हो जाएं तो भी कम ही होगा…
“यह सब कहने की बातें हैं सरदार! मैं अपने सैनिकों को युद्धभूमि में अकेला छोड़ कर स्वयं अपना प्राण बचाने निकल जाऊं, यह सम्भव नहीं।” राणा दृढ़ थे।
“समझने का प्रयत्न कीजिये महाराज! आपके जीवित रहने का अर्थ है इस भरोसे का जीवित रहना कि इन आतंकी मुगलों की छाती पर भगवा लहराता रहेगा। आपका जीवित रहना भारत में भारत का जीवित रहना है महाराज! आप अपना फैसला स्वयं नहीं कर सकते… आपको जीना ही होगा, स्वयं के लिए नहीं मातृभूमि के लिए… मेरी मानिए।” झाला सरदार अडिग थे।
“तो क्या तुम मेरे लिए…” राणा कुछ कह नहीं सके। झाला सरदार मुस्कुराए-” मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ महाराज! धर्म के आगे कोई महत्वपूर्ण नहीं। मैं गया तो हजारों सरदार मिलेंगे, पर आपके जैसे नायक बार बार नहीं मिलते। आप निकलिए और मुझे मेरे गर्व के साथ मरने दीजिये…”
राणा रुक गए थे। पीछे से अनेक सरदार पास आ गए, सभी झाला सरदार की बातों से सहमत थे। मायूस राणा ने झाला सरदार को अपना मुकुट और ध्वज दिया, झाला सरदार अब महाराणा प्रताप बन कर आगे बढ़ गए। प्रताप की आंखों में अश्रु उतर आए थे, उनके मुख से अनायास ही निकला, “जाओ सरदार! आज तुम्हारा सरदार तुम्हें प्रणाम करता है। तुम अमर होवो, उस लोक में अपनी प्रतिष्ठा प्राप्त करो…”
राणा धीरे धीरे पीछे छूटते गए और युद्धभूमि के बाहर हो गए। उनके हिस्से इस हल्दीघाटी के महायुद्ध से भी कठिन युद्ध आने वाला था…
शाम होते होते असंख्य शत्रुओं को मार कर झाला सरदार वीरगति को प्राप्त हो गए। राष्ट्र के लिए, धर्म के लिए, स्वाभिमान के लिए, महाराणा प्रताप के लिए… शत्रुदल को तब पता चला, राणा तो निकल गए।
तबसे महाराणा प्रताप लड़ते ही रहे… न रुके, न थके, न हारे…
युद्धभूमि में राणा के ध्वज तले लड़ कर वीरगति पाने वाला हर योद्धा ‘प्रताप’ ही था। प्रताप मात्र एक व्यक्ति का नाम नहीं, उस विचार का नाम है जो राष्ट्र और मानवता के लिए जीवन भर लड़ने का साहस देता है। प्रताप आज भी इस राष्ट्र के असंख्य युवकों के हृदय में जी रहे हैं।
तमाम नकारात्मकताओं के बीच रोज कुछ न कुछ ऐसा दिखता है कि भरोसा हो जाता है, प्रताप अब भी जी रहे हैं। वे हमेशा जिएंगे…
साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।