Positive India: New Delhi:
(भाषा) मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की कुप्रथा से मुक्ति दिलाने के मकसद से मंगलवार को राज्यसभा में पेश विधेयक पर हुयी चर्चा में भाग लेते हुए विभिन्न दलों के सदस्यों ने इसे अपराध की श्रेणी में डालने के प्रावधान पर आपत्ति जतायी और कहा कि इससे पूरा परिवार प्रभावित होगा। हालांकि सत्ता पक्ष ने इस विधेयक को राजनीति के चश्मे से नहीं देखे जाने की नसीहत देते हुए कहा कि कई इस्लामी देशों ने पहले ही इस प्रथा पर रोक लगा दी है। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 उच्च सदन में चर्चा के लिये पेश किया और कहा कि उच्चतम न्यायालय के एक फैसले में इस प्रथा को अवैध ठहराया गया। लेकिन उसके बाद भी तीन तलाक की प्रथा जारी है। यह विधेयक लोकसभा में पिछले सप्ताह ही पारित हुआ है। विधेयक पर हुयी चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस सदस्य अमी याज्ञनिक ने कहा कि महिलाओं को धर्म के आधार पर नहीं बांटा जाना चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि सभी महिलाओं के प्रति क्यों नहीं चिंता की जा रही है? उन्होंने कहा कि समाज के सिर्फ एक ही तबके की महिलाओं को समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। उन्होंने कहा कि यह समस्या सिर्फ एक कौम में ही नहीं है। उन्होंने कहा कि वह विधेयक का समर्थन करती हैं लेकिन इसे अपराध की श्रेणी में डालना उचित नहीं है। याज्ञनिक ने कहा कि जब उच्चतम न्यायालय ने पहले ही इसे अवैध ठहरा दिया तो फिर विधेयक लाने की क्या जरूरत थी। उन्होंने कहा कि विधेयक में इसे अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया है। इससे महिलाओं को अपराधियों के साथ मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश होना होगा। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों की सुनवाई पारिवारिक (फैमिली) अदालत में होनी चाहिए न कि मजिस्ट्रेट अदालत में।
उन्होंने कहा कि विधेयक में प्रावधान किया गया है कि पति और पत्नी के अलावा तीसरा व्यक्ति भी अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। उन्होंने इस प्रावधान पर आपत्ति जताते हुए कहा कि किसी तीसरे व्यक्ति को पारिवारिक या निजी मामले में हस्तक्षेप की अनुमति कैसे दी जा सकती है? उन्होंने कहा कि कानून का मकसद न्याय और अंतत: गरिमा है लेकिन इसके प्रावधानों के तहत महिला को मजिस्ट्रेट अदालत में अपराधियों के साथ बैठने को बाध्य होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि महिलाओं को कानूनी सहायता का भी कोई प्रावधान नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को तीन तलाक की समस्या से मुक्ति दिलाइए लेकिन ऐसा उनकी गरिमा के साथ होना चाहिए।
चर्चा में भाग लेते हुए जद यू के बशिष्ठ नारायण सिंह ने विधेयक का विरोध किया। उन्होंने कहा कि वह न तो विधेयक के समर्थन में बोलेंगे और न ही इसमें साथ देंगे। उन्होंने कहा कि हर पार्टी की अपनी विचारधारा होती है और उसे पूरी आजादी है कि वह उस पर आगे बढ़े। जद (यू) के सदस्यों ने विधेयक का विरोध करते हुए सदन से बहिर्गमन किया। इससे पूर्व माकपा सदस्य के के रागेश ने 21 फरवरी 2019 को जारी मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अध्यादेश के खिलाफ अपना प्रस्ताव पेश किया।
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