तालिबान के हाथों दानिश सिद्दीकी की हत्या
आखिरकार रवीश कुमार ने तालिबान लिखना ही पड़ा।
Positive India:Vishal Jha:
आखिरकार रवीश कुमार ने तालिबान लिखना ही पड़ा।
“तालिबान के हाथों दानिश सिद्दीकी की हत्या” कुछ ऐसे शब्दों से ही अपने लंबे चौड़े पोस्ट की शुरुआत कर रवीश कुमार ने प्रमाणित कर दिया कि दानिश सिद्दीकी की हत्या के लिए तालिबान के खिलाफ एक शब्द भी बिना बोले निकल जाना आसान नहीं रहा अब भारत में।
इस बदलते हुए भारत में Ravish, आपको देश अथवा राष्ट्र ही नहीं अपितु राष्ट्रवाद के सामने भी झुकना ही पड़ेगा, ऐसा आपने हालिया पोस्ट में जाहिर कर दिया है। पर पूछता हूं कि दानिश सिद्दीकी की हत्या अगर तालिबानियों ने की है तो इसके लिए तालिबान को कटघरे में डालने से आपकी पत्रकारिता कमजोर तो नहीं पड़ेगी? क्या इसी प्रकार राष्ट्रवाद के रचनात्मक रोस्ट में आप पकते रहे तो आपमें एक दिन राष्ट्र के प्रति प्रेम देखने को हमें मिल सकता है?
पर मसला है कि यदि आपने राष्ट्र और सत्य की बात करने वाली रचनात्मकताओं को महज काउंटर करने के लिए तालिबान शब्द का उपयोग किया है, तो निश्चित मानिए फिर भी आप स्वयं की गंदी नियत को छिपा नहीं सकते। ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि “तालिबान के हाथों दानिश सिद्दीकी की हत्या” से शुरुआत आपके पोस्ट में आगे कहीं भी तालिबान शब्द का पुनरुपयोग नहीं है। इसलिए कि ताकि तालिबान आपके पोस्ट में कंफर्ट जोन में रह सके। बल्कि आपने पूरे लेखन में दानिश सिद्दीकी के कर्मों को कवर फायर देने की चर्चा कर ली है। आपके लिए दानिश की हत्या का प्रश्न महत्वपूर्ण नहीं।
इस बात को आप को समझना पड़ेगा कि गोली को लानत भेजने वाली आपकी पोस्ट के पश्चात लोगों ने आपके द्वारा तालिबान शब्द का उपयोग न करने को लेकर रोस्ट किया था। अर्थात् यह मसला महज शब्द उपयोग का नहीं था। यह मसला आपके मनोविचार के स्तर को नग्न करने से जुड़ा था।
इसलिए आप इस बात की चिंता ना करें कि आप कितना नग्न हुए जा रहे हैं। बस आप अपनी गन्दी मानसिकता का नित्य प्रतिदिन एक नया प्रतिमान स्थापित करते चले। लगातार। वर्षों से दरबारी पत्रकारिता में आपने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया हुआ है। इसे महज कुछ घंटों के राष्ट्रवादियों के रोस्ट से भयभीत होकर फीका ना पड़ने दें। आप एक निडर पत्रकार हैं।
साभार:विशाल झा(ये लेखक के अपने विचार हैं)