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हिंदी लेखकों और पत्रकारों के साथ घटतौली की अनंत कथा

हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा भले न हो बाज़ार की सब से बड़ी भाषा है इस दुनिया में। हिंदी से ज़्यादा न सिनेमा बनता है, न धारावाहिक, न अखबार हैं हिंदी से ज़्यादा, न हिंदी से ज़्यादा किताबें छपती हैं…

वामियों के इकोसिस्टम ने एकजुट होकर सुशोभित को क्यों घेरा ?

ऐसा कौन-सा डेस्पेरेशन था, जो हिन्दी के इतने सारे होनहार एक साथ टूट पड़े और वह भी उस किताब के लिए जिसे उन्होंने अभी पढ़ा तक नहीं है, न कभी पढ़ेंगे। जानवरों के हित में बात करना और शाकाहार की…

किसी लेखक के लिए किसी खूंटे में बंध कर रहना बिलकुल ज़रुरी नहीं

कम्युनिस्टों के अलोकप्रिय होने में यह एक बड़ा कारण है । वामपंथियों में एक बात कामन है । वह है विचारधारा के प्रति कट्टरता। यह भी कि धार भले कुंद हो जाए पर लीक नहीं छोड़ेंगे ।