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#Shloka

गीता के तीसरे अध्याय (कर्मयोग) में ऐसा सूत्र आया है कि उस पर आजीवन मनन किया जा सकता…

'गुणा गुणेषु वर्तन्त।' गुण ही गुणों में बरत रहे हैं। जैसे त्रिगुणात्मिका प्रकृति की कोई स्वचालित प्रक्रिया है। आपसे पृथक है। आपके बिना भी हो रही थी, आपके बिना भी होती रहेगी।