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समझिये भाजपा के एजेंडे में क्यों था अनुच्छेद 370 हटाना ?

अनुच्छेद 370 पर सोचना भी दुष्कर था। लेकिन राज्यसभा में कंफर्टेबल बहुमत ना होते हुए भी भाजपा ने अनुच्छेद 370 की दोनों धाराएं हटा दी। देश अचंभा हो गया।

10 मार्च के बाद अपनी तुलना चवन्नी से भी करने लायक़ नहीं रह जाएंगे जयंत चौधरी !

27 जनवरी , 2022 को दयानंद पांडेय ने यह लेख लिखा था। अब देखिए कि जयंत चौधरी की दुर्गति चवन्नी से भी कैसे गई गुज़री हो गई है ?

एम्स में काम कर रहा कश्मीरी डॉक्टर क्यों नहीं चाहता था कि कश्मीर आतंकवाद से मुक्त हो?

एम्स में डॉक्टर है। देश की राजधानी में इंटर्नशिप कर रहा है। देश की माटी का खाया, पिया, पढ़ा और सुरक्षा का लाभ लिया है और विचार कश्मीर को भारत से काटने का है?

लोकतंत्र के आख़िरी चुनाव से नैतिक जीत के इल्हाम तक

सेक्यूलरिज्म के नाम पर , मुस्लिम के नाम पर दाग़ है डाक्टर कफील। बच्चों का हत्यारा है वह। पिता की विरासत सपा को नेस्तनाबूद करने का अगर प्रण ही ले बैठे हों तो और बात है।

कश्मीर मे पिता की अस्थियां विसर्जित करने के लिए भी इस्लामिक चरमपंथियों से इजाजत क्यों…

उस कश्मीर मे जहां पिता की अस्थियां विसर्जित करने के लिए भी इजाजत लेनी पड़ती थी..वहां की सच्चाई सामने लाने पर भारत विरोधी एजेंडा गिरोह के लोग कह रहे हैं कि इस फिल्म की जरुरत ही क्या है ??

कैसे कुछ लोग अपने को अपने बाप का बताने को ले कर होड़ में लग गए हैं?

कश्मीर फाइल्स फ़िल्म के बहाने कैसे कुछ लोग अपने को अपने बाप का बताने को ले कर होड़ में लग गए हैं। क्यों कि उन्हें समझा दिया गया है कि जो भी कोई ग़लती से भी कश्मीर फ़ाइल्स का हामीदार या प्रशंसक…

फाइलें खुलने से भाजपा एक्सपोज होगी। तुम्हें क्यों डर है? तुम क्यों परेशान हो?

नरेंद्र मोदी कश्मीर की फाइलें खोलने वालों के साथ खड़े हैं। और कितनी इमानदारी चाहिए? जो अपने ही खिलाफ अपनी फाइलें खुलवा रहा। हां, अच्छा होगा तुम भी साथ हो जाओ।

आप भ्रष्टाचार करें बलात्कार करें और भारत मां को डायन तक कहे पर आपसे कोई कोई सवाल ना…

अभी गायत्री प्रजापति , आज़म खान जेल में हैं। लालू यादव की तरह कब तुम भी जेल पहुंच जाओगे , पता ही नहीं चलेगा। सवाल तब और ज़्यादा पूछे जाएंगे। खरीदी हुई मीडिया और मीडिया मालिक तब काम न आएंगे।…

कांग्रेस को अपने आई टी सेल में कुछ काम के लोग क्यों रखने चाहिए ?

चुनाव और राजनीति बच्चों का खेल नहीं , समझदारों और कमीनों का खेल है । कौन कितना अच्छा लड़ता है , इस से किसी को कोई सरोकार नहीं। सरोकार इस बात से होता है कि कौन विजयी होता है ।