देखा जाए तो सत्ता से ज्यादा विपक्ष की भूमिका राष्ट्रीय हित के मामले मे सर्वोपरि रहती है । जब सरकार निरंकुश हो जाये तो नकेल कसने का महत्व पूर्ण काम भी विपक्ष ही करता है ।
विपक्ष के पास एक ही तरीका बचा है कि इवीएम पर इतना हल्ला करो कि जनता में इसके प्रति अविश्वास पैदा हो जाये । देश की जनता इतनी भी मूर्ख नही कि कोई भी डमरू बजाये और उसके साथ हो चले ।
कहाँ गए विपक्ष के धर्म निरपेक्ष नेता? क्या सबके मुँह मे ताला लग गया है? जिस तरह धूर्तता के साथ रामायण और महाभारत पर बकवास कर ली, चीन और रूस मे रहकर ऐसा सोच भी नहीं सकते थे ?