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#Geeta

गीता का छठा अध्याय साधकों-मुमुक्षुओं के ​लिए बड़ा मूल्यवान है

"आत्मसंस्थं मन: कृत्वा" गीता को ब्रह्मविद्या के साथ ही योगशास्त्र भी क्यों कहा गया है- क्योंकि यह ग्रंथ न केवल परब्रह्मविषयक ज्ञान का वर्णन करता है (उप​निषदों की तरह), बल्कि उसकी प्राप्ति…

गीता के तीसरे अध्याय (कर्मयोग) में ऐसा सूत्र आया है कि उस पर आजीवन मनन किया जा सकता…

'गुणा गुणेषु वर्तन्त।' गुण ही गुणों में बरत रहे हैं। जैसे त्रिगुणात्मिका प्रकृति की कोई स्वचालित प्रक्रिया है। आपसे पृथक है। आपके बिना भी हो रही थी, आपके बिना भी होती रहेगी।