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#editorial

विपश्यना, वासना और प्रेम का द्वंद्व: एक मनोवैज्ञानिक यात्रा

यह उपन्यास एक सशक्त मनोवैज्ञानिक यात्रा है,जिसमें अतीत और वर्तमान के बीच झूलते हुए, पात्रों की आंतरिक दुनिया और बाहरी घटनाओं का अद्भुत मेल है।

महाकुंभ में सम्पन्न होगा सदानीरा त्रिवेणी लोक विमर्श

डेढ़ दो महीने चलने वाले संसार के सबसे बड़े मेले में जीवन का हर रंग उभरता है। उल्लास, आनन्द, भय, दुख, अवसाद... इस बार ही नहीं, हर बार... सारे भाव साथ दौड़ते हैं, पर अंततः जीतता है उल्लास! वही…

कभी नहीं जन्मे, कभी मरे नहीं…

10 अप्रैल 1989 को रजनीश ने अपने जीवन का अंतिम सार्वजनिक व्याख्यान दिया। यह 'द ज़ेन मैनिफ़ेस्टो' पुस्तक में संकलित हुआ है। वह व्याख्यान इन शब्दों के साथ समाप्त हुआ था : "गौतम बुद्ध के अंतिम…

कोई धर्म नगरी,सब त्यागने जाता है,कोई धर्म नगरी,प्रभु को पाने जाता है

भागिये कभी,जेहादियों से,भाग लीजिए कभी किसी नश्वर देह के पीछे,अपना स्वर्णिम अवसर खो दीजिए,भागना ही आपकी प्रवृत्ति है,क्योंकि ये ही आपकी नियति है..

अति राजनीतिक चर्चा हिन्दू जागरण नहीं है

प्रत्येक धार्मिक सामाजिक सांस्कृतिक घटना को भी राजनीति से जोड़कर देखने का चलन बढ़ा है और उस पर चर्चा करके हमें लगता है हमने हिंदुत्व की सेवा कर दी।

इस्लामी राज में भारत में सनातन धर्म बचा कैसे रहा

ईरान में मात्र पंद्रह वर्ष में पारसी धर्म ग़ायब हो गया । ईराक़ सीरिया तुर्की मिश्र लीबिया अल्जीरिया मोरक्को के मूल धर्म तो नष्ट ही हो गए ।

अयोध्याजी में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण एक ऐतिहासिक घटना है।

अयोध्या में श्री राम मंदिर का बनना भारतीय स्वाभिमान की पुनर्प्रतिष्ठा का दिन था। वह अधर्म पर धर्म के विजय का दिन था। वह बर्बरता पर सज्जनता की विजय का दिन था। वह विध्वंस की भूमि पर निर्माण का…

समय नहीं व्यतीत हो रहा, हम ही व्यतीत हो रहे हैं।

चाणक्य कहते हैं "स्वयं को अजर अमर मानकर विद्या और अर्थ का संचय करना चाहिए लेकिन मृत्यु ने केशों से पकड़ रखा है ऐसा मानकर प्रतिक्षण धर्म का आचरण करना चाहिए।"