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Advocate General Kanak Tiwari

दिग्विजयदास: टुकड़े टुकड़े याद-कनक तिवारी की कलम से

यह कोई महत्वाकांक्षी राजपुरुष की कथा नहीं है। यह तो उसकी त्रासदी की काव्यात्मकता है जो महन्त दिग्विजयदास को किंवदन्तियों के नायक का रुतबा देती है।

माता विमाता-कनक तिवारी की कलम से

‘ढूँढो तुम अपनी माँ को उनकी विमाता की छाती में, जो अपनी अनजायी सन्तान के नासूर का सारा मवाद सुखा देना चाहती थीं। उस विमाता की विवशता में ढूँढो जो बाई को एक औरत की मौत के थोड़े समय बाद ही वही…

ऐ मेरे प्यारे वतन , तुझ पे दिल कुरबान

क्रांतिकारियों के चित्र सरकारी दफ्तरों में क्यों नहीं टांगे जा सकते? क्या वे लोगों में बगावत के शोले सुलगाएंगे? वे असली भारत रत्न हैं। भारत मां की कोख के कोहिनूर हीरे।