‘ढूँढो तुम अपनी माँ को उनकी विमाता की छाती में, जो अपनी अनजायी सन्तान के नासूर का सारा मवाद सुखा देना चाहती थीं। उस विमाता की विवशता में ढूँढो जो बाई को एक औरत की मौत के थोड़े समय बाद ही वही…
क्रांतिकारियों के चित्र सरकारी दफ्तरों में क्यों नहीं टांगे जा सकते? क्या वे लोगों में बगावत के शोले सुलगाएंगे? वे असली भारत रत्न हैं। भारत मां की कोख के कोहिनूर हीरे।