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सविधान

संविधान तो बदलेगा और उस में सरकार जेल से नहीं चलाने की बात लिखी जाएगी

जो आदमी कश्मीर का कोढ़ 370 हटा सकता है , कश्मीर को फिर से ज़न्नत बना सकता है। देश को आतंक मुक्त बना सकता है। अयोध्या में सकुशल राम मंदिर बनवा सकता है। विकास की चांदनी में देश को नहला सकता है…

हिंदू-मुसलमान का आइस-पाइस , आरक्षण की मलाई और चुनाव के मायने

संविधान की आड़ में , संविधान को बचाने का शोर भी यही नफ़रती तत्व सब से ज़्यादा करते हैं। संविधान तोड़ते रहते हैं , संविधान बचाने का टोटका करते रहते हैं। वह चाहते तो शरिया मुस्लिम पर्सनल लॉ ही हैं…

संविधान बचाने का कुचक्र करने वाले अचानक मनुवाद की उल्टी क्यों करने लगते हैं?

रोहित वेमुला को जबरिया दलित घोषित कर जय भीम , जय मीम का नैरेटिव सेट करते हैं। तब जब कि अंबेडकर इस्लाम को अभिशाप और वामपंथियों को बंच आफ ब्राह्मण ब्वायज कहते हुए दुत्कारते मिलते हैं। फिर भी…

तुग़लक़ पागल नहीं , बहुत बुद्धिमान था पर बतौर प्रशासक अक्षम भी लेकिन आज के तुग़लक़ ?

तुग़लक मज़हब से लड़ने की तरकीब जानता था । आज लेकिन सेक्यूलरिज्म के घनघोर दौर और दंभ में भी धर्म से लड़ने का लोग हौसला नहीं रखते । सेक्यूलरिज्म के नशे में चूर , राम के अस्तित्व को जो लोग अदालत…

संविधान खतरे में है का विध्वंसकारी नारा लगाने वाले लोग अचानक मनुवाद की उल्टी क्यों…

रोहित वेमुला को जबरिया दलित घोषित कर जय भीम , जय मीम का नैरेटिव सेट करते हैं। तब जब कि अंबेडकर इस्लाम को अभिशाप और वामपंथियों को बंच आफ ब्राह्मण ब्वायज कहते हुए दुत्कारते मिलते हैं। फिर भी…

सेक्युलरिज्म भारत में कब तक शोभायमान है ?

हिन्दू छात्रों ने केसरिया इसलिए नहीं धारण किया कि पंथनिरपेक्ष विद्यालयों का संप्रदायिकरण किया जाए। बल्कि इसलिए कि अब बहुत हुआ, संविधान का एकतरफा अनुप्रयोग। अब यदि मजहब का हिजाब सही तो धर्म…

लोकतांत्रिक चरित्र खो चुके दल नहीं कर सकते लोकतंत्र की रक्षा: मोदी

पॉजिटिव इंडिया:नयी दिल्ली; प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए पारिवारिक पार्टियों को संविधान के प्रति समर्पित राजनीतिक…

अर्नब का संघर्ष व्यवस्था के साथ है ना कि व्यक्ति के साथ।

आप लुच्चा हैं ? हत्यारे हैं ? आतंकवादी हैं ? यह सवाल मुंबई पुलिस से नहीं, अर्नब से है। अर्नब को कानून का सम्मान करते हुए स्वंय को पुलिस के हवाले करना चाहिए था, भले पुलिस ने सम्मन ना किया हो!…

देश के संसाधनों की असंवैधानिक लूट : कनक तिवारी

कुदरत की देन या सम्पत्ति का मूल्य या महत्व किसी एकाधिकारवादी की हविश के आधार पर नहीं होना चाहिए। उनका वास्तविक उद्योग हर वक्त समाज के समावेशी उद्यमी चरित्र पर मूल्यांकित होता है। सामाजिक…

विकास और आदिवासी विनाश(1)कनक तिवारी की कलम से

आदिवासियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी भूमियों के स्वामित्व और आधिपत्य को बचाए रखने, उसकी वैधानिक मान्यता चाहने, उसके पारम्परिक दोहन और फिर उसके माध्यम से अपनी संस्कृति, परम्पराओं,…