आरक्षण की खीर खाने के लिए कुतर्क करते रहिए। मौज करते रहिए। नो प्रॉब्लम। लेकिन आरक्षण की बैसाखी ले कर आप सरकारी नौकरी पा सकते हैं। सुविधाएं भी। पर सम्मान कभी नहीं।
रोमांचक और खूबसूरत जीवन की चुनौतियों के बदले मुक्ति का श्मशान जैसा सन्नाटा मुझे आकर्षित नहीं करता... अपनी असंख्य तृष्णाओं पर थोड़ा नियंत्रण और अनुशासन तक तो ठीक है...लेकिन इनसे मुक्ति ?
कृष्ण की कथा इसमें सबसे रुचिकर है। कृष्ण से बड़ा निस्संग कौन हुआ? रण में, वन में, भवन में, भुवन में, प्रणय में, कलह में- वे एकाकी ही हैं, ठीक वैसे, जैसे कोई विराट-रूप सर्वथा असंग होता है।
वामपंथियों को किसान आंदोलन का खौलता कड़ाहा मिल गया। खालिस्तानियों का धन और बल मिल गया। इन को लगा कि अब यह देश में मुकम्मल आग लगा देंगे। अगर 26 जनवरी को मोदी सरकार और दिल्ली पुलिस ने अहिंसक…