लंपट वामियों कामियों सेक्युलरों की नौटंकी में क्यों नहीं फंस रहा बहुसंख्यक?
बहुसंख्यक हिन्दुओं में "ज़हर" पीने की परंपरा तो रही है, लेकिन समाज में जहर भरने की परंपरा का कंही जिक्र नहीं है। हिंदुओं की तो कोई ऐसी "किताब" भी नहीं जंहा से ज़हर लेकर परोसा जा सके।