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जावेद अख्तर

एक ही गीतकार, एक ही साल में दो बातें कैसे लिख सकता है?

हम चाहे जितने रैशनल हों, उस परम्परा के ही हिस्से हैं, जिसमें सदियों से ईश्वर की प्रार्थना की जा रही है। जब हम अपने विपरीत जाकर कोई चीज़ लिखते हैं, तब वह परम्परा हम में से बोलने लगती है।

प्रसिद्धि ही यदि पैमाना है, तो क्या दाऊद इब्राहिम और हाफिज सईद को भी नमन करना चाहिए?

और तो और, आजकल उर्फी जावेद जितनी प्रसिद्ध है, उतने प्रसिद्ध तो जावेद अख्तर भी नहीं हैं। तो क्या किया जाए? शर्मनाक! अत्यंत शर्मनाक!!

मां के बनाए काजल की कालिख से मुनव्वर राना ने अपना चेहरा काला कर लिया

मुनव्वर राना ने मां के बनाए काजल को अपनी आंख में लगाने के बजाय अपने चेहरे पर पोत कर अपना चेहरा काला कर लिया है। इंसानियत को शर्मशार कर दिया है। धिक्कार है इस मुनव्वर राना पर। वह लोग जो…

तो पूरा भारत ही अब तक इस्लामी राष्ट्र होता हम सभी मुसलमान होते तालिबान होते !

जावेद अख्तर जैसे सफ़ेदपोश कठमुल्ले इसी लिए जब-तब आर एस एस के प्रति अपनी घृणा और नफरत का इज़हार करते रहते हैं। यह सब तब है जब कि अब आर एस एस वाले बार-बार इस्लाम के अनुयायियों को भी अपना बंधु…