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गुलज़ार

एक ही गीतकार, एक ही साल में दो बातें कैसे लिख सकता है?

हम चाहे जितने रैशनल हों, उस परम्परा के ही हिस्से हैं, जिसमें सदियों से ईश्वर की प्रार्थना की जा रही है। जब हम अपने विपरीत जाकर कोई चीज़ लिखते हैं, तब वह परम्परा हम में से बोलने लगती है।