गीता कहती है कि संसाररूपी जो वृक्ष है, उसमें मूल ऊपर है, शाखाएँ नीचे हैं!
जैसे वृक्ष की जड़ें पाताल में होती हैं और वहाँ से वृक्ष का तना फूटकर आकाश की ओर बढ़े चला जाता है, उसके ठीक उलट, जो सर्वोच्च पद है, उस ब्रह्म से संसार की व्युत्पत्ति होती है और उसके बाद…