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कबीर

हमारे समाज के लेखक का कबीर आख़िर कहां गुम हो गया है ?

हमारे लेखकों ने अपने कबीर को सोने के अंडे देने वाली मुर्गी की तरह अपने लालच , स्वार्थ और दंभ में मार डाला है । कबीर को मार कर अपने को नफ़रत और जहर का केंद्र बना लिया है । ज़रुरत अपने कबीर को…

भारतीय समाजवाद के जनक कबीर

कबीर को जिन्होंने मात्र धर्म का विकल्प समझा उन्होंने ही कबीर के समाजवादी आंदोलन का,विचारों का कत्ल कर दिया । जिन्होंने कबीर को मात्र धर्मगुरु मानकर उनके "गेय शब्दों"को लेकर निकले व जगह-जगह…

हमारे समाज के लेखक का कबीर आख़िर कहां गुम हो गया है ?

तो क्या बहुतायत देशवासी भाजपाई और संघी हो गए हैं ? हो गए हैं तो क्यों हो गए हैं ? इन लेखकों को क्या इस पर विचार नहीं करना चाहिए । जैसा कि हर असहमत को इन के द्वारा भाजपाई , संघी कहने से लगता…

हमारे समाज के लेखक का कबीर आख़िर कहां गुम हो गया है ?

मीडिया को हमारा समाज अब दलाल नाम से जानता है । क्या आप लोग चाहते हैं कि आने वाले दिनों में मीडिया की तरह लेखक समाज को भी दलाल कह कर , जाना जाए ? माफ़ कीजिए हमारे आदरणीय लेखक मित्रों आज के दिन…

कुछ लोग साहित्य में भी आरक्षण की ही तलब रखते हैं

जो लोग साहित्य में भी आरक्षण की ही तलब रखते हैं, उन से कोई विमर्श करना दीवार में सिर मारना होता है । पिछड़ों , दलितों के साहित्य में भी आरक्षण की तलब भी गज़ब है ।

क्या युवा मानसिक गुलामी का शिकार हो रहे हैं?

झूठा व्यवहार व भ्रष्टाचार इस देश के युवाओं का सबसे बड़ा दुश्मन है। इसके लिए जवाबदार वे नहीं जिन्होने आप की आंखों पर भावनाओं की पट्टी को बांध रखा है। इसकी वजह स्वयं आप है जिसने बेवजह अपने को…

भूपेश बघेल ने कबीर पंथी जुलूस को रवाना किया

मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि सद्गुरु कबीर ने सम्पूर्ण मानव जगत को सामाजिक सदभाव और समरसता का मार्ग दिखाया। उन्होंने तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए समाज…

संत कबीर पर कनक तिवारी का विशेष लेख

कबीर से बेहतर सेक्युलरवाद की परिकल्पना संविधान में भी नहीं है। संविधान तो सेक्युलरवाद के नाम पर अलग अलग कोष्ठकों में धर्मगति को नियंत्रित करता है। कबीर मुफलिस थे अर्थात आत्मा के निद्र्वन्द्व…