गुरुओं को कभी एकलव्य जैसे शिष्यों की कामना नहीं करनी चाहिए । जिस तरह साधक सद्गुरु की खोज में रहता है उसी तरह सद्गुरु को भी पात्र शिष्य की खोज रहती है ।
एकलव्य कोई दबा-कुचला निर्धन नहीं था । श्रृंगबेर राज्य का शासक था । लेकिन अंगूठे का छल का व्याकरण रच कर आरक्षण की मलाई चाटनी ज़रुर एक छल है । इस छल और कुप्रचार को समाप्त किया जाना चाहिए ।