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उर्फी

आज तक के कार्यक्रम में साहित्य धूमिल की पटकथा की बाल्टी वाली ‘आग’ है , भीतर तो उर्फी…

जब पोर्न स्टार मिया ख़लीफ़ा किसान आंदोलन में कूद सकती हैं तो साहित्य आज तक मे उर्फी जावेद से क्या दिक़्क़त है भला ?

प्रगतिवादी लेखक/कवि जो न कर सके, उर्फी ने वह साहित्य आज तक में कर के दिखाया

कल्पना कीजिये कि उर्फी उन्ही वस्त्रों में उपस्थित हो जाँय जिसके लिए उनकी ख्याति है। भइया जी! दिल्ली का बौद्धिक वर्ग अपना दिल जिगर गुर्दा कलेजी लुटा देगा...