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मांसाहार

भला कोई ‘रातोंरात’ गांधीवादी कैसे बन सकता है?

हिन्दी साहित्य की अंदरूनी दुनिया झूठ, प्रपंच, भितरघात, कुंठा, ईर्ष्या, दुर्भावना और द्वेष से भरी हुई है। हिन्दी के लेखक किन्हीं राजनैतिक दलों के कार्यकर्ताओं की तरह व्यवहार करते हैं। फ़र्क़…

क्या शाकाहार एक ‘सवर्णवादी’ विचार और वीगनवाद एक…

वामधारा का आरोप है कि "शाकाहार एक 'सवर्णवादी' विचार है, जिसे लोगों पर 'थोपा' जाता है और इसके बहाने विशेषकर ब्राह्मणवादी ताक़तें मुख्यतया मुसलमानों, दलितों और पिछड़ी जातियों पर निशाना साधती…

मांसाहार और शाकाहार का प्रश्न खानपान का नहीं, जीवहत्या और जीवदया का प्रश्न है।

42 वर्ष पूर्ण होने पर लेखक सुशोभित ने स्वयं को दिया एक अनोखा उपहार ! पशु-पक्षियों के जीवन की अस्मिता, और अस्मिता के साथ जीवित रहने के उनके अधिकार पर वर्षों से लिखी जा रही पुस्तक की…

यह मांसाहार बनाम शाकाहार की नहीं, जीवहत्या बनाम जीवदया की बहस है!

मैं जीवहत्या को जीवदया से अधिक महत्व देता हूं और इसके बावजूद वह अपने नैतिक आधार की रक्षा कर सके। और वो यह बात जानता है कि नैतिक आधार पर उसका पक्ष कमज़ोर है।