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तुलसीदास

रावण की स्त्रियों के बारे क्या सोच थी वह रावण की ही थी तुलसी की नहीं

महाभारत में कितनी बार नारी के लिए अपमान जनक शब्दों का प्रयोग हुआ है पर कोई इसके लिए महाभारत के रचयिता वेदव्यास को दोषी नहीं ठहराता । मर्चेंट ऑफ़ वेनिस के यहूदी पात्र शाइलॉक का इतना चरित्र…

तुलसी अकेले ब्राह्मणों के कवि हैं? कि रामचरित मानस नफरत फैलाने वाला ग्रंथ है?

संस्कृत भाषा का इतना बड़ा ज्ञानी क्यों कर अवधी में राम कथा लिख रहा था? इस सबका जवाब कौन देगा?क्या वे कुपढ़ अपढ़ लोग जो चौबीसों घंटे सिर्फ जातियों की ही राजनीति करते हैं और शासन पूरे समाज पर…

बाबा तुलसीदास और प्रायश्चित में गरुड़ संवाद : अधम जाति मैं विद्या पाये /भयउँ जथा अहि…

इसमें क्या ग़लत है ? जातिप्रथा तो थी ही उस समाज में लेकिन ब्राह्मण गुरु ने शूद्र को न केवल शिष्य के रूप में अपनाया उसे विद्या प्रदान की उसके कल्याण के लिए भगवान शिव से कातरता पूर्ण प्रार्थना…

कुतर्की और नफरत के शिलालेख लिखने वाले जहरीले लोगों के विमर्श में फंसने से क्यों बचना…

स्त्री पुरुष दोनों को बराबरी में बिठाते मिलते हैं तुलसीदास रामचरित मानस में। आप को पूछना ही चाहिए , पूछते ही हैं लोग फिर ढोल, गंवार, शुद्र, पशु , नारी । सकल ताड़ना के अधिकारी॥ लिखने की ज़रूरत…

कुतर्की और नफरत के शिलालेख लिखने वाले जहरीले लोगों के विमर्श में फंसने से कृपया बचें

रामचरित मानस हिंदी में नहीं अवधी में लिखी है। अवधी जुबान है रामचरित मानस की। और कि किसी भी अवधी वाले से , अवधी जानने वाले से पूछ लीजिए कि अवधी में ताड़न शब्द का अर्थ क्या है ? वह फौरन बताएगा…

कुछ लोग साहित्य में भी आरक्षण की ही तलब रखते हैं

जो लोग साहित्य में भी आरक्षण की ही तलब रखते हैं, उन से कोई विमर्श करना दीवार में सिर मारना होता है । पिछड़ों , दलितों के साहित्य में भी आरक्षण की तलब भी गज़ब है ।

संत कबीर पर कनक तिवारी का विशेष लेख

कबीर से बेहतर सेक्युलरवाद की परिकल्पना संविधान में भी नहीं है। संविधान तो सेक्युलरवाद के नाम पर अलग अलग कोष्ठकों में धर्मगति को नियंत्रित करता है। कबीर मुफलिस थे अर्थात आत्मा के निद्र्वन्द्व…