बड़के साबजी बहुत गुस्सा मे है कि सरकार ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति जल्दबाजी में क्यों कर दी?
-अजीत सिंह की कलम से-
Positive India:Ajit Singh:
बहुत बड़के साबजी ने आदेश दिया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त के Appointment में सरकार को उनके चीफ़ जस्टिस की भी राय लेनी पड़ेगी…यही बड़के साबजी अपने जजों की नियुक्ति में Collegium सिस्टम चालू रखना चाहते है और चुनी हुई सरकार से कोई राय नहीं लेना चाहते हैं,गजबै है ये…!
..अब इसको आप क्या कहेंगे…यही न कि..बड़के साबजी अब अपने न्यायिक वंशवाद की परम्परा को बचाने के लिये छटपटा कर केंद्र के ऊपर जबरदस्त दबाव बनाने का ऐसा कार्य कर रहे हैं,जिसके कारण संवैधानिक संकट उत्पन्न होने के साथ साथ जनता के मन मे बड़के साहबों के प्रति जनता के मन मे बचे खुचे सम्मान पर क्षति पहुंच सकती है…..लेकिन बड़के साब तो बड़के ही हैं…कौन उन पर ऊंगली उठा सकता है…..चाहे दिन मे दुकान खोलने की परम्परा का पालन करें…..चाहे आधी रात मे मेमन के लिये दुकान का शटर उठा कर काउंटर पर बैठ जायें….हैं तो बड़के साहबजी ही न…लेकिन जो इन पर बोलेगा….वो कानूनन कायदे से निहाल हो जायेगा..
यही भय बड़के साबजी का बन चुका था….जो अब रह रह कर…टूट टूट कर इन्ही के कारण बिखरता जा रहा है…!
काश!
कृषि कानूनों पर आई अपनी ही रिपोर्ट को जल्दबाजी में नहीं,बल्कि समय लेकर ही देश के सामने रख दिया होता और देश को बताते कि कृषि कानूनों की किसानों को कितनी आवश्यकता है।
काश!
जस्टिस हिमा कोहली को जज बनाने की जल्दबाजी आप न किये होते…!
बहरहाल….कड़वा सच तो यह है कि ….विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता,नरेंद्र मोदी को न लुटियन,न अर्बन नक्सली और न ही बड़के साहब बर्दाश्त कर पा रहे..उसी तरह छटपटा रहें हैं बेचारे…जैसे मलाई के कनस्तर पर बैठ कर मन भर मलाई चांपती बिल्ली के सामने से वो कनस्तर हटा लेने के बाद होता है…!
बड़के सॉब…कठघरे में न्यायतंत्र है….आप मानिये या न मानिये….मी लॉर्ड का मी लॉर्ड द्वारा,मी लॉर्ड के लिए बन चुका है न्यायतंत्र…कोलैजियम उसी का प्रसव केंद्र बन चुका है…तभी तो अब सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायधीशों की नियुक्ति के लिए बनी कॉलेजियम प्रणाली पर अब सवाल उठने लगे हैं।
कॉलेजियम प्रणाली पर विचार की जरूरत है जिस तरह से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर एक Frivolous Petition की सुनवाई कर रहे हैं संविधान पीठ के 5 जज और मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं…यहां से अपनी बात शुरू करता हूं कि कभी कुछ नियम अपने लिए भी बना लीजिये मीलार्ड या सरकार से चाहते हो सब कुछ।
अभी कुछ महीने पहले….सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका सरकार पर बहुत बुरी तरह बरसे हैं क्योंकि सरकार ने कॉलेजियम के बार बार अनुमोदित नामों के लोगों को जज नहीं बनाया। कुछ नाम तो ऐसे थे जिन्हें कई बार सरकार को भेजा गया मगर सरकार चुप बैठी रही। यह सुप्रीम कोर्ट को स्वीकार नहीं है।
इन जजों ने कहा कि हम अवमानना का नोटिस देना चाहते थे मगर हम साधारण नोटिस दे रहे हैं कानून मंत्रालय को…सुप्रीम कोर्ट काबिल लोगों की सेवाओं से वंचित रह जाता है…. 2019 में एक वकील जोयतोष मजूमदार का नाम का प्रस्ताव किया गया था मगर सरकार ने स्वीकार नहीं किया और अभी हाल ही में उसकी मौत हो गई।
बड़के साबजी,
आप जब भी सरकार पर आरोप लगाएं तो यह समझ कर चलिए कि सामने बैठी देश की जनता मूर्ख नहीं है वो अपना Mind apply करना जानती हैं।
जस्टिस कौल तो कॉलेजियम के मेंबर हैं,मगर जस्टिस ओका कॉलेजियम में नहीं है और जस्टिस ओका को सरकार से टकराने से पहले याद कर लेना चाहिए कि वे (जस्टिस ओका) 9 जजों में एक थे जिनकी नियुक्ति 31 अगस्त, 2021 को एक साथ हुई थी…उन 9 जजों में सबसे बड़ा गड़बड़झाला तत्कालीन CJI NV Ramna ने किया था हिमा कोहली को सुप्रीम कोर्ट का जज बना कर जबकि वो 1 सितंबर को आँध्रप्रदेश हाई कोर्ट से रिटायर होने वाली थी।
इससे ज्यादा जल्दी और क्या कॉलेजियम के निर्णय को मानने के प्रक्रिया हो सकती है……….जस्टिस पारदीवाला की नियुक्ति के बाद सुप्रीम कोर्ट को Vacancies के बराबर जज पहली बार मिले थे क्या कहीं ऐसी सरकार मिलेगी और आप उस पर अवमानना का नोटिस ठोकना चाहते थे।
जस्टिस संजय किशन कौल तो कॉलेजियम के सदस्य हैं और सरकार के खिलाफ इतना विलाप करने से पहले एक बात का जवाब दें कि 30 सितंबर को CJI यूयू ललित के कॉलेजियम की मीटिंग जस्टिस चंद्रचूड़ ने क्यों नहीं होने दी……………..आपकी हिम्मत नहीं है चंद्रचूड़जी से पूछने की कि देर रात साढ़े 9 बजे तक मुकदमों की सुनवाई क्यों करते रहे………..बस इसीलिए न, कि चंद्रचूड़जी की आखिरी कॉलेजियम की मीटिंग में 5 जजों की सुप्रीम कोर्ट के लिए नियुक्ति न हो सके।
इतना ही नहीं जब अगले दिन यू.यू.ललितजी ने वो नाम कॉलेजियम के सदस्यों को स्वीकृति के लिए भेजे तो चंद्रचूड़जी और नज़ीरजी ने उस तरीके को गलत बता दिया…!!
कितनी घटिया राजनीति खेली चंद्रचूड़जी ने और अब आपसे एतराज उठवा रहे हैं….जस्टिस कौलजी एक बार पता करके बताएं कि क्या 30 सितंबर के बाद चंद्रचूड़ ने एक दिन भी देर रात तक सुनवाई की है।
इसलिए कॉलेजियम को पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए……..अगर सरकार एक बार सुझाये नामों से सहमत नहीं है तो कॉलेजियम को उन्हें बदलना चाहिए…ये कैसी तानाशाही है कि आप दोबारा वही नाम भेजेंगे क्योंकि वो सरकार को मानने ही होंगे। आप सरकार पर डंडा नहीं चला सकते।
पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति के Procedure के लिए नियम बनाये थे की कितने समय में कौन सा विभाग क्या काम करेगा..कभी ऐसे नियम अपने लिए भी बनाइये जिससे मुक़दमे 15 – 15 साल तक न लटके रहें……फिलहाल नोट बंदी का केस 6 साल तक लटकाने वाले अधिकारियों और जजों के खिलाफ भी प्रभावी कार्रवाई करें CJI चंद्रचूड़जी…!!
सरकार को न्यायपालिका के लिये संविधान में बराबर के अधिकार दिए गए है…सच्चाई तो यही है कि ये War of Supremacy लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं हैं….चीफ जस्टिस को याद रखना चाहिए कि सामने राष्ट्रनायक,शिवपुत्र,मोदी है और यदि मोदी की सरकार ने कॉलेजियम के नामों पर आपत्ति की है तो उन्हें बदलिए….वरना उन पर अनावश्यक इस तरह से लगातार दबाव डाला जायेगा, तो जो जानकारी आपकी बाबत उनके पास होंगी…या है….तो विश्वास करिये ….यकीन मानिये वो आपको कहीं का नहीं छोड़ेंगी…..छोटे हों या बड़े घरों की चाय छानने वाली छलनियों मे भी बड़े बड़े छेद होते हैं…बड़के साबजी…जरा झांक कर देखिये,वही छेद आपके अभी तक बनाये गये औरा मे हो चुका है…अब बस बचाइये अपने सम्मान के साथ देश के संविधान और उसके साथ साथ देश की जनता के न्यायिक विश्वास को…..!!
#साभार प्राप्त वाया व्हाट्सअप….संशोधन सहित प्रस्तुत
#वंदेमातरम्
#Ajit_Singh
साभार:अजीत सिंह-(ये लेखक के अपने विचार है)