Positive India:Gajendra Sahu:
*”आओ सिखाऊँ तुम्हें अंडे का फ़ंडा ये नहीं प्यारे कोई मामूली बंदा”*
यह गाना लगभग १५ साल पहले आई किसी फ़िल्म का हिस्सा था । पर, ये गाना आज सत्य साबित हो रहा है । वाक़ई में किसी राज्य के विधानसभा सत्र के दौरान सभी दिन किसी की चर्चा हो , जो विधानसभा की कार्यवाही को स्थगित कर दे वो मामूली हो ही नहीं सकता ।
अखबार , न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया द्वारा भी दिन भर अंडे की कार्यवाही विधानसभा से निकल कर हमारे घर तक पहुँच रही है । मैं तो ये सोच रहा हुँ कि जो अंडा नहीं खाते वो इससे बचने का क्या उपाय निकाल रहे होंगे । और जो खाते है वो तो दिन भर लार टपकाते घूम रहे होंगे ।
छत्तीसगढ़ के बाहरी राज्यों में छग को धान का कटोरा , आदिवासी बहुल क्षेत्र , नक्सल प्रभावित राज्य और तरह तरह नामो से जानते है । यदि अंडे पर सियासत यूँ ही उबलती रही और अंडे का फ़ैसला सही समय पर नहीं किया गया तो हो सकता है इस राज्य को “अंडे का फ़ंडा” वाला राज्य का भी ओहदा जल्द मिल जाएगा ।
बात ये है कि राज्य में कुपोषित बच्चों की संख्या लगभग ४०% से ४५% तक है । राज्य सरकार द्वारा कुपोषण को रोकने के लिए मध्यान भोजन के दौरान अंडा देने का काम शुरू किया । अब इस बात को विपक्ष मुद्दा बनाकर सियासी खेल शुरू कर चुकी है । अब यहाँ ध्यान देने वाली बात ते है कि क्या विपक्ष के पास मुद्दे नहीं लड़ने को , इससे तो ये साबित हो रहा है कि वर्तमान सरकार सभी कार्य सुचारू रुप से कर रही है और आपके पास उन्हें ग़लत साबित करने का कोई मुद्दा ही नहीं है तो आप उन्हें अंडे के फेर में फँसा रहे है ।
क्या मंत्री क्या विधायक एक-दूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप चल रहा है । विधानसभा सत्र जिसमें सरकार के कार्यों का लेखा-जोखा होता है । सवाल पूछे जाते है । जवाब दिए जाते है । ऐसे में क्या अंडे को इतना बड़ा ओहदा देना आवश्यक है । मुझे ऐसा नहीं लगता ।
शिक्षा मंत्री द्वारा भी स्पष्ट किया जा चुका है कि जिन बच्चों को अंडा खाना है वह अंडा खाए और जिन्हें अंडा नहीं खाना उनके लिए केला और सोयाबीन विकल्प के रूप में रखा गया है ।
कुछ लोग इसका इतना भयंकर विरोध कर रहे है जैसे उन्ही के बच्चों को टारगेट में लेकर ज़बर्दस्ती अंडा खिलाया जा रहा है । आप को जानकार हँसी आएगी कि अंडे पर सियासी खेल खेलने वाले अपने बच्चों को उस सरकारी स्कूल में ही नहीं पढ़ाते जहाँ इस अंडे को परोसा जाता है जहाँ से अंडा मुद्दे के रूप में आया है । फिर चाहे वो पक्ष का नेता हो या विपक्ष का नेता ।
अंडे को संप्रदयिकता से भी जोड़ा जा रहा है । अंडे को सांप्रदायिकता से जोड़ने का तो मैं घोर विरोध करता हूँ सरकार को तो अभी दरकिनार ही रखो । मेरे बहुत से ऐसे मित्र है जो ऐसे धर्म या जाति से आते है जिन्हें अंडा , मांस और शराब का सेवन करने की मनाही है । पर वो खाते है पीते है । हाँ बस ये बात है कुछ लोग शौक़ से खाते है और कुछ मजबूरी के चलते खाते है ।
मेरी उम्र के नौजवान मित्र जिम जाते है , शरीर बढ़ाते है और डोले-शोले बनाते है । उन्हें भी अंडा का सेवन करने को कहा जाता है । क्यूँकि अंडा में जो प्रोटीन मिलता है वह दूसरों में मिलता है पर कम मात्रा में । कुछ लोग वेज़ीटेरिन भी होते है जो अंडे का सेवन नहीं करते और उन्हें इसके विकल्प में केला और सोयाबीन के सेवन का परामर्श भी दिया जाता है । बिलकुल हमारे शिक्षा मंत्री जी की तरह ।
शिक्षा के मंदिर में जहाँ माँ सरस्वती का वास है वहाँ अंडे का सेवन करना निश्चित रूप से ग़लत है पर बात बच्चों के भविष्य की है । यदि अंडा , मछली , मुर्ग़ा और बकरा से आस्था को अपमान पहुँचता है तो आपको बता दूँ कि बंगाल में मछली के बिना माँ काली की पूजा नहीं की जाती । किसी भी मन्नत के पूरा होने पर बकरे की बलि दी जाती है फिर उसे ही प्रसाद के रूप में बाँटकर खाया जाता है ।
हालात तो ऐसे है कि छग में “अंडा” नामक गाँव में भी इस बात की चर्चा चल रही है कि आख़िर उनके गाँव के लोगों ने ऐसा कौन सा कारनामा कर दिया या बहुत जल्द उनके गाँव में विकास की गंगा बहने वाली है कि विधानसभा में रोज़ रोज़ उनके गाँव के नाम का मुद्दा उठता है ।
अब देखना है अंडे का मुद्दा कहाँ तक जाता है । इसे छग के सियासत में किस तरह अपनाया जाता है । कहीं ऐसा न हो अंडे को सरकार अपने पक्ष में भुना ले और “अंडा आयोग” का निर्माण कर विपक्ष के मुद्दे को ठोस कर दे ।
ख़ैर जो भी हो जनता का भला हो ऐसी उम्मीद करता हूँ और हाँ…
“संडे हो या मंडे , रोज़ खाओ अंडे ”
माफ़ कीजिए ये पुराना हो गया ..
“संडे हो या मंडे , नेता चिल्लाएँ अंडे अंडे”