अतुल सुभाष की आत्महत्या कानून के दायरे में होने वाली प्रताड़ना और अत्याचार का मुद्दा है
- सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से -
Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
पिछले दो दिनों से यह नाम चर्चा में है। कारण यह कि पत्नी और ससुराल वालों की प्रताड़ना और बार बार के केस से हार कर इस व्यक्ति ने आत्म घात कर लिया है। ऐसा भारी निर्णय लेने के पहले उन्होंने एक 24 पेज का लंबा नोट लिखा, डेढ़ घण्टे का वीडियो बना कर अपना पक्ष रखा और…
अतुल सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे, बैंगलोर में नौकरी करते थे। विवाह के कुछ वर्ष बाद ही किसी अनबन के कारण उनकी पत्नी अलग रहने लगी। फिर उसने केस किया और कोर्ट ने 40 हजार प्रतिमाह का गुजारा भत्ता बांध दिया। अतुल यह चालीस हजार प्रतिमाह दे रहे थे।
उस महिला का लोभ बढ़ता गया। उसने एक के बाद एक पूरे नौ केस किये। अतुल अपने नोट में बताते हैं कि उन्हें केस की तारीख के कारण दो साल में बैंगलोर से नब्बे बार जौनपुर आना पड़ा। वे बार बार ऑनलाइन उपस्थिति आदि के लिए निवेदन करते रहे पर कोर्ट ने उनकी बात नहीं सुनी। उनकी पत्नी अब बच्चे की परवरिश के नाम पर गुजारा भत्ता दो लाख रुपये महीने करने के लिए लड़ रही थी। उसने केस खत्म करने के लिए डेढ़ करोड़ रुपये की मांग की थी।
सच कहूँ तो मुझे अतुल सुभाष की बात पर तनिक भी संदेह नहीं। गाँव देहात में हर तीसरे दिन दिखने वाले उदाहरण के आधार पर कह सकता हूँ कि इस केस ने सचमुच उनके जीवन को नरक बना दिया होगा। उनके पास सचमुच कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा होगा…
मैं यह नहीं कह रहा कि देश मे दहेज के लिए लड़कियों को परेशान नहीं किया जाता, पर यह भी सच है कि दहेज के नब्बे फीसदी केस झूठे होते हैं। अब असंख्य केस ऐसे दिखने लगे हैं जिसमें किसी अन्य पुरुष के साथ अपने सम्बन्धों के कारण महिला पति को छोड़ती है, और उस पर दहेज का केस कर के भरपूर पैसा वसूलती है, फिर उन्ही पैसों से अपने प्रेमी के साथ घर भी बसा लेती है।
दहेज के केस में इस देश का कानून पुरुष को एकतरफा अपराधी मान लेता है। महिला को बस आरोप भर लगा देना है, कोर्ट पुरुष का जीवन नरक बना देता है। ठीक से सोचें तो यह भयावह है, बहुत ही भयावह है।
आदमी जब पीड़ित होता है तो कोर्ट की शरण में जाता है। जब कोर्ट ही अन्याय करने लगे, पीड़ा देने लगे तो कहाँ जाय? अगर अतुल के स्थान पर खुद को रख कर देखिये तो उस महिला से साथ कोर्ट भी बराबर का दोषी दिखेगा। अतुल ने तो अपने नोट में जज पर भी आरोप लगाया है कि उसने केस रफा दफा करने के लिए पाँच लाख मांगे थे।
अतुल सुभाष का मुद्दा केवल एक व्यक्ति के परिस्थितियों से पराजित हो जाने का मुद्दा नहीं, बल्कि यह कानून के दायरे में होने वाली प्रताड़ना और अत्याचार का मुद्दा है। यह एक खतरनाक चलन है जिसका दंश किसी को भी भुगतना पड़ सकता है।
इस मुद्दे पर ब्यापक चर्चा होनी चाहिये, क्योंकि इस तरह के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। अगर यह आतंकी कानून यूँ ही एकतरफा व्यवहार करता रहा, तो नरक हो जाना तय है।
साभार:सर्वेश तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।