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स्त्री-2 में स्त्री नहीं पुरुषों ने बवाल काटा है

-गजेंद्र कुमार साहू की कलम से-

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Positive India: Gajendra Kumar Sahu:
स्त्री २ यह साबित करती है कि किसी भी फ़िल्म की कहानी का दूसरा भाग निश्चित रूप से बहुत बढ़िया और सफल हो सकता है। इस भाग में श्रद्धा कपूर के चोटी और उसकी अतीत की कहानी का राज दोनों खोल दिये गए है। चन्देरी का रक्षक विक्की (राजकुमार राव) को फिर नए दायित्व के साथ भूतों के बीच ढकेल दिया गया है। स्त्री फ़िल्म केवल नाम के लिए ही स्त्री है इस पूरी फ़िल्म में पुरुषों ने ही बवाल काटा है।

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MADDOCK FIMS की तारीफ़ तो बनती है। उन्होंने भूतों का जो नया संसार हमारे सामने प्रस्तुत किया है उसमें डर के साथ-साथ कॉमेडी का तड़का भी है। इनकी भूत की फ़िल्मों को देखने के लिए आपको चादर से झांकने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और आप बेख़ौफ़ होकर लाइट बंद कर सकते हैं।

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ये जो यूनिवर्स तैयार कर रहे है उसे देखकर आपको मार्वल यूनिवर्स की याद आ ही जाएगी। बीच में दूसरे फ़िल्मों के कैरेक्टर की एंट्री कराकर उन्हें कहानी से जोड़ना, आगे आने वाले कहानी के लिए संकेत देना और ख़ासकर पोस्ट क्रेडिट सीन के साथ दर्शकों को बेक़रार करके छोड़ देना इनकी विशेषताओं का हिस्सा है। स्त्री २ का क्लाइमेक्स आपको एवेंजर्स एंड गेम के क्लाइमेक्स में लेकर जाएगा यदि आप जाना चाहें तो वरना कोई ज़बरदस्ती नहीं है।

फ़िल्म में सभी किरदारों ने अपना बेस्ट दिया है। पर मैं पंकज त्रिपाठी और राजकुमार राव की अलग से तारीफ़ करके उन्हें थोड़ा ज़्यादा भाव दे सकता हूँ। ये भाव ज़्यादा क्यों है आप फ़िल्म देखेंगे तो समझ ही जाएँगे। दोनों के संवाद, कॉमेडी और अभिनय कमाल है। बाक़ी आप अपनी मर्ज़ी के मालिक है आप फ़िल्म देखकर स्वयं आँकलन कर सकते हैं।

आख़िरी बात तमन्ना भाटिया, अक्षय कुमार और वरुण धवन इस फ़िल्म में ठीक उसी तरह है जिस तरह गुपचुप खाने के बाद सुखी पापड़ी का मिल जाना।

लेखक: गजेंद्र कुमार साहू-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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