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दाल मे कुछ काला है या पूरी दाल काली है?

डर है कि बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:अब चुनाव के समय जाने अनजाने भाषण देते हुए, जो शख्स इस दुनिया मे नही है और उसके गलत काम पर उल्लेख करने से ऐसी हाय तौबा की जा रही है, जिसका कोई मतलब नही है । जैसे देखा जा रहा है अब एक खेमे के किये गये पुराने गलत काम और पाप का जब पर्दाफाश हो रहा है तो वो तबका बेचैन हुआ जा रहा है। क्योंकि अभी तक उन्होंने वो साहित्य उपलब्ध कराया जो उनके लिए व उनके पार्टी के लिए सुविधाजनक था । जब सत्ता बदलती है तो साहित्य के देखने का नजरिया बदल जाता है । यही कारण है इतने दिन तक जिस सत्य से इन्हे तकलीफ होती है वो जब सामने आ रहा है तो ये उसे स्वीकार करने की स्थिति मे नही है । जब यही बात थी तो इन्हे दूसरे विचारधारा का भी सम्मान किया जाना चाहिए था । तब तो सामने वाले की पगड़ी उछालने मे आनंद आता था । तब कभी यह जेहन मे क्यो नही आया कि देश के लिए ये लोग भी न्योछावर हुए थे । तब तो ये भय था कि स्वतंत्रता संग्राम का श्रेय ये लोग न ले जाये । तब उनका कोई मान अपमान नही ? अगर इधर से कोई बात निकल जाये तो इनके सांख मे आंच आने लगती है । डर है कि बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी । अभी तक जो ढंका हुआ था उसके खुलने से कयामत कही न आ जाए । क्या इतिहास की चर्चा नही होती ? क्या मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने धोबी के कहने से सीता जी को अरण्य मे नहीं छोड़ा था । क्या युधिष्ठिर ने जुंआ मे सब कुछ हारने के बाद दौपदी को नही हारा था । जो महाभारत का कारण भी बना । क्या इसे हम अपने धार्मिक ग्रंथ मे नही पढते ? जब किसी का भी मूल्यांकन होगा दोनो पक्ष क्यो नही देखे जाऐंगे ? क्या मुगल बादशाहो के भी अत्याचार के बारे मे इन सरकारो ने छुपा कर नहीं रखा ? इन सब के स्कूलो के पाठ्यक्रम मे क्यो नही रखा गया ? इस देश मे इनकी अक्षुण्ण याद रखने के लिये शहर के नाम, सड़को के नाम एक साजिश के तहत रखे गए । अगर अंग्रेजो ने अत्याचार किया तो राजाओ के पुतले जहा हटा दिया वही उनके नाम से संबंधित सभी नाम बदल दिये । फिर यही मापदंड इस तरफ क्यो नही अपनाया गया ? साफ था वोट की राजनीति और तुष्टिकरण की राजनीति इसका बड़ा कारण रही है । इसलिए शहीद के वो काम जो पुलिस अधिकारी के रूप मे किये गए ये उसके मूल्यांकन मे क्या गलत बात है । जिन नेताओ के नाम इस षड्यंत्र मे आ रहे है अगर उनमे इतना भी नैतिक साहस नही की अपना नारकोटिक्स टेस्ट कराकर उक्त अधिकारी दोष मुक्त करवा देते ? यही हाल सिक्ख दंगे का भी है जहां जिन पर आरोप है वो नेता इनके लिए सहयोग नही कर रहे है । वही दूसरे तरफ सामने वाले का तीन बार इस टेस्ट को कर दिया है । एक बार नैतिकता के नाम से सिद्धांत की राजनीति करने वाले को यह पहल कर सबको संतुष्ट कर देना चाहिए । दाल मे कुछ काला है या पूरी दाल काली है । जिससे ये पहल करने मे उन्हे स्वंय पर पहले विश्वास करना होगा । जिसकी कमी साफ परिलक्षित होती है । अब तो इन्हे हिंदू आतंकवाद का साक्ष्य देकर इस बात को हर समय के लिए पटाक्षेप करना होगा । पर मृत शखस पर लगे आरोप पर तभी दोषमुक्त होंगे जब अपनी अग्नि परीक्षा मे सफल होंगे ।
लेखक:चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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