
कोई धर्म नगरी,सब त्यागने जाता है,कोई धर्म नगरी,प्रभु को पाने जाता है
-तत्वज्ञ देवस्य की कलम से-

Positive India:Tatvagya:
सबकी अपनी–अपनी प्रवृति है,और वो इसलिए भी है,क्योंकि सबकी अपनी–अपनी नियति है,जिसकी जैसी नियति,उसकी वैसी प्रवृति।कोई धर्म नगरी,सब त्यागने जाता है,कोई धर्म नगरी,प्रभु को पाने जाता है,कोई धर्म के नाम पे,ठगने जाता है,कोई कुछ उपाय पाने हेतु,ठगा जाना चाहता है,इसलिए वहां,भागा चला जाता है,कोई चाहता है,धर्म का चोगा पहन,माया को पा ले,कोई माया को त्याग,धर्म को करता है,आदरपूर्वक ग्रहण।
धर्म नगरी में भी,कुछ लोग माया तलाशते मिल जाएंगे,और मायानगरी से किसी तरह,बाहर निकल,कई यहां धर्म निभाते दिख जाएंगे,सबके अपने–अपने चुनाव हैं,और वो इसलिए, क्योंकि,सबका अपना–अपना मार्ग निश्चित है,वो निश्चित है,प्रारब्ध के कर्मों से,पूर्व में जो चुनाव किए,वो वर्तमान में फल या दंड बन कर आएंगे,कई इस अवसर पर,पुण्य को पाने के स्थान पर,पाप को गले लगाएंगे,असंख्य इस मौके को माया के पीछे भाग कर गंवाएंगे और उन असंख्यों में से कुछ गिने चुने,इस परम अवसर में,
अपना जन्म उद्देश्य पा जाएंगे।
एक “माध्यम”,जो धर्म पथ पर ले कर जाता है,वो ही धर्म नगरी में आपसे अधर्म भी करवाएगा,आपके “नयन” किस ओर जाएंगे,ये आपकी प्रवृत्ति को बतलाएगा,आप असल में कौन हैं,ये आप जानेंगे,आपके जीवन में जो कष्ट हैं,वो क्यों हैं,जो होंगे वो क्यों होंगे,ये आप अभी समझ जाएंगे,बस आवश्यकता है,भीतर झांकने की,स्वयं का आंकलन करने की,जिससे हम बचते हैं,और दूसरों का आंकलन करने में,दूसरों पर निर्णय देने में,पल भर भी नहीं ठहरते हैं,ये हमारा गुण नहीं,दुर्गुण है,पर हाय रे हमारा भ्रम,हमारा अहंकार,हमारी ईगो,हम इस दुर्गुण के बचाव में,तमाम तरह के कुतर्क करते हैं,दोष सदैव दूसरे का ढूंढते हैं,दोषी हम ही हैं,ये कहने से डरते हैं,डरिए न..डरिए और भागिए..
भागिये कभी,जेहादियों से,भाग लीजिए कभी किसी नश्वर देह के पीछे,अपना स्वर्णिम अवसर खो दीजिए,भागना ही आपकी प्रवृत्ति है,क्योंकि ये ही आपकी नियति है..
भाग्य में,भागना ही लिखा हो,
तो,भागवत कृपा,कहां से होगी?
तुम भाव भी किनको दे रहे हो?और उन्हें भाव देकर भी क्या पा रहे हो?उन्हें जो पाना है,वो पाएंगे,जो तुम्हारे चक्करों में पड़कर,पाना है या गंवाना है वो उसे प्राप्त करेंगे,पर तुम..तुम्हारा क्या होगा?तुम्हें जन्म मिला था,भारत भूमि में,हिंदू परिवार में,तुमने क्या किया इस जन्म का?किसके पीछे बर्बाद किया?
सोचना..और फिर जाना किसी धर्म नगरी..
या जहां हो,वहां ही धर्म निभाना,धर्म को धारण करना..
पर ये स्मरण रखना,धर्म नगरियों में,पुण्य कर्म करोगे,तो उसका अनंत गुना फल पाओगे,और अगर वहां पाप कर्म किया,तो उसका अनंत गुना दंड भी पाओगे,ये धर्म नगरी ऐसी ही नहीं बनी,ये स्थूल नगरी के भीतर एक सूक्ष्म नगरी है,जिसे तुम तब देख पाओगे,तब उसका आभास कर पाओगे,जब उसकी पात्रता तुम में होगी..
और ये नहीं कि,दिखावे के लिए पुण्य कर्म करने लग गए,आजकल चला है ना,कैमरा ले कर,स्क्रिप्ट के हिसाब से,पुण्य कर्म करने का दिखावा,ना बाबू ना,जिसने तुमको रचा है,उसे मूर्ख मत समझो,उसके बनाए “सिस्टम” को तो बिल्कुल भी नहीं,वो सब देख रहा है,वो सब भांप जाएगा,जान जाएगा,तुम कितनों को धोखा दे लो,स्वयं को भी भ्रम में रख लो,पर उसे भ्रम में न रख पाओगे..
वो ही ब्रह्म है,वो ही विष्णु और वो ही शिव,वो ही माया है,वो ही शक्ति,वो ही गौरी,वो ही कृष्ण है,वो ही काली,वो ही भैरव, वो ही हनुमान और,वो ही हमारे राम.!
समझे?
समझते तो तुम हो,
सब समझते हो,पर मानते कहां हो?
मत मानो,समय मनवा लेगा..
फिर भी जिद्द करके,नहीं माने,
तो न मानने का,”रिजल्ट” भी,तुमको,दिखला देगा..
कभी इस जन्म में,कभी उस जन्म में..
क्योंकि,
समय बड़ा बलवान रे बाबू,समय बड़ा बलवान..!
जय महाकाल
जय जय श्री राम
जय जय श्री कृष्ण
साभार:तत्वज्ञ देवस्य
माघ कृष्णा अष्टमी
बुधवार,२२ जनवरी २०२५
विक्रम संवत् २०८१
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#महाकाल