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तो आप मशालची बन कर क्यों उपस्थित हैं ?

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
मैं भी किसान हूं। हां , जमींदार नहीं हूं। राजनीतिक गुलामी वाला किसान नहीं हूं। छोटी जोत का किसान हूं। इतना कि ट्रैक्टर , कंबाइन और कोई अधिया लेने वाला न हो तो खेत परती रह जाएं। खेती करना बहुत कठिन काम है। अनाज बेचना तो और कठिन काम। हमारे घर में तो कभी अनाज बेचा नहीं गया।

पिता जी अनाज बेचने को जैसे अधर्म समझते थे। किसी ज़रूरतमंद को भले दे दें , बेचने नहीं दिए। हां , बहुत से जान-पहचान और रिश्तेदारों को अनाज बेचने के लिए हद से अधिक परेशान देखा है। लोग मुझे फोन करते हैं। एस डी एम से नीचे किसी से बात करने पर काम ही नहीं चलता। खाद के लिए भी पहले जो मारा-मारी होती थी , पूछिए मत। मोदी राज आने के बाद अब किसी से खाद के लिए कुछ नहीं कहना पड़ता। नए कृषि बिल के बाद उम्मीद करता हूं कि अब अनाज बेचने के लिए भी लोगों को परेशान नहीं होना पड़ेगा। और कि लोगों को अपनी उपज का दाम भी अच्छा मिलेगा। घर बैठे मिलेगा।

अगर लुधियाना का बना कपड़ा , देश भर में बिक सकता है , सूरत की साड़ी देश भर में बिक सकता है तो किसी किसान का अनाज देश भर में क्यों नहीं बिक सकता। किसान का मन , जहां चाहे , जिस दाम पर चाहे बेचे। तेली का तेल जल रहा है , उसे कोई तकलीफ नहीं तो आप मशालची बन कर क्यों उपस्थित हैं। तमाम रूढ़ियां टूटी हैं , परंपराएं टूटी हैं , तकनीक बदली है , लोग बदले हैं , अनाज बेचने का तरीका भी बदलता है तो क्या बुरा है। खेती करने का तरीका भी बदलता है तो क्या बुरा है। सड़क , पुल और मकान बनाने का तरीका भी बदला है। खेती का तरीका और व्यापार भी बदलने दीजिए। मशालची बनने की भूमिका से बाज भी आइए।

तय मानिए कि विपक्ष निरंतर मशालची बन कर अपनी कब्र खोद रहा है। इस कृषि बिल ने किसानों के ठेकेदार यथा शरद पवार , और बादल परिवार की अथाह कमाई पर भी ब्रेक लगा दिया है। अरे , अंबानी , टाटा जैसे लोग हर कारोबार में आगे हैं , साफ़-सुथरा अनाज भी बेच ही रहे हैं तो अगर उन्नत खेती के लिए भी अगर आगे आते हैं तो स्वागत है उन का। खेती को भी लाभदाई बनाना बहुत ज़रूरी है। नहीं कर्जों में दबे किसान कब तक आत्महत्या करते रहेंगे। तमाम सेक्टर जैसे कंप्यूटर , मोबाइल , इंटरनेट , रियल स्टेट , कपड़ा , तेल , साबुन , पब्लिक ट्रांसपोर्ट , कारखाने आदि-इत्यादि में निजीकरण के बिना कुछ हो सकता है क्या ?

तो अगर खेती भी उद्योगपतियों के हाथ जाती है तो बुरा क्या है। खेती को भी किसी उद्योग की तरह लाभदायी बनाना बहुत ज़रूरी है। किसानों को आखिर कब तक भिखारी बनाए रखना चाहते हैं हमारे विपक्षी दल ? राज्य सभा में आज जो मारपीट का मंज़र पेश किया है विपक्ष ने , पूरे देश ने देखा है। किसानों ने भी। नोटबंदी , जी एस टी , पर भी विपक्ष का ड्रामा जनता ने देखा था , विपक्ष को लतिया कर औकात में ला दिया। पर विपक्ष को जनता का जूता खाने की जैसे आदत पड़ गई है।

बात-बेबात तकलीफ है विपक्ष को। तीन तलाक , 370 हो या सी ए ए , हर कहीं मशालची की भूमिका में रहना किसी डाक्टर ने कहा है क्या। अभी जल्दी ही जनसंख्या नियंत्रण क़ानून भी आएगा। देखिएगा , विपक्ष फिर मशालची की भूमिका में मिलेगा। सी ए ए की तरह , जनसंख्या नियंत्रण पर भी दंगा , वंगा भी फिर करवा दे विपक्ष तो हैरत नहीं।

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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