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कन्याभोज के लिए बुलाई 6 साल की मासूम का बर्बर बलात्कार के बाद हत्या

-यशवंत गोहिल की कलम से-

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Positive India: Yashwant Gohil:
6 साल की मासूम…उसे छूने वालों हाथों को उसने हमेशा अपने पिता, माता, भाई के स्नेह के रूप में सहेजा होगा। उसे अंदाजा ही नहीं होगा कि इस दुनिया में ऐसे दरिंदे भी हैं, जो उसे नोच सकते हैं।

दुर्ग की इस बच्ची को किसी ने कन्याभोज के लिए बुलाया था। कन्याभोज यानी माता के रूप में वो पूजी गई, उसके पांवों में आल्ता लगाया गया, उसका श्रृंगार देवी के रूप में किया और रात में वो नोच ली गई।

पुलिस कह रही है उसके साथ सेक्लुअल असाल्ट हुआ। क्या जानती होगी वो बच्ची सेक्स के बारे में…इस नज़र से छूते हुए हाथ कैसे नहीं कांपे उस हरामजादे के…प्राइवेट पार्ट में सिगरेट दागा, काटा, इलेक्ट्रिक शॉक दिए और मार डाला। मारकर डिक्की में छिपा दिया।

इतनी भयानक घटना अगर दिल्ली में हुई होती तो अब तक संसद घिर चुका होता। देश-दुनिया की मीडिया लपककर रो रही होती। गली-गली में मोमबत्तियां लेकर लोग निकल चुके होते, लेकिन यहां…छत्तीसगढ़..दुर्ग…थोड़ा हल्ला गुल्ला…फिर सब शांत।

क्या दिल्ली में बच्ची की अस्मत लुट जाने का मूल्य दुर्ग की बच्ची की अस्मत से ज्यादा है? ये सवाल है मीडिया से…खैर, लकीर पीटने से क्या फायदा। उस बच्ची की मां गुहार लगा रही है, चीख रही है भीड़ के सामने, मीडिया के सामने- मेरी बच्ची को न्याय दो…क्या न्याय इतना सरल है छत्तीसगढ़ में।

अभी पता चल जाए बस कि वो बच्ची किस जाति की थी…देखिए फिर कास्ट पॉलिटिक्स, पता चल जाए कि बच्ची किस धर्म की थी, फिर देखिए कैसे बनता है मुद्दा…बहसें होंगी, संदर्भों की बाढ़ आ जाएगी…अभी वो कुछ नहीं है, न सब्जेक्ट, न ऑब्जेक्ट, कोई क्यों आवाज़ उठाए?

समाज को शर्मिंदगी नहीं होती क्योंकि ये बेटियां उनके अपने घर की नहीं होती। जिसके घर की बेटी होती है, उसके पास आंसू, आस और आह के सिवाय कुछ भी नहीं होता। न्याय के लिए आंखों में कब झुर्रियां पड़ेंगी, पता नहीं चलेगा और ज़माना बेटियों को चांद पर पहुंचाने के लिए भाषण देता रहेगा।

खोखले हो चुके लोगों को थोड़ा लौटना चाहिए अपने मानव होने की बुनियाद की तरफ। लगातार अपने मूल्यों से भागते रहने की बजाय ठहरना चाहिए। थोड़े से तो आंसू समेटों अपने भीतर। कुछ तो ज्वार उठे अंदर। आंखें थोड़ी तो लाल हों। ये कुछ नहीं हो रहा तो हम जानवरों की तरह ही जी रहे हैं। फर्क कुछ भी नहीं है और कभी पड़ेगा भी नहीं। फिर बेटी किसी की भी हो…

साभार-यशवंत गोहिल

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