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वैक्सीन अपनी है तो एतराज कर दो ? कुछ तो शर्म करो

विपक्ष का एक ही एजेंडा है कि आओ भड़काएँ !

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Positive India:Vivek Mohan Pradhan:
अजीब बात है न !
वैक्सीन अपनी है तो एतराज कर दो ?
बहुराष्ट्रीय कंपनी की होती तो चुप रह जाते ?
दर्द ही इस बात का है कि अपने देश में बनी वैक्सीन को मंजूरी कैसे मिल गयी ?
इसीलिए तो अपनी स्वदेशी वैक्सीन को बीजेपी की वैक्सीन तक कह दिया ?
अपने ही दुश्मनों, कुछ तो शर्म करो ?

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बहुराष्ट्रीय कंपनी फाइजर की वैक्सीन को मंजूरी नहीं मिली तो कुछ भाई लोग जलभुन गए । फाइजर की वैक्सीन 5000₹ में मिलती, माइनस 70 डिग्री तापमान पर रखने के लिए हजारों करोड़ रुपयों की सुपर कोल्ड चेन स्थापित करनी पड़ती । यह खर्च सरकार पर क्यौं नहीं पड़ा, यही दर्द है । दर्द यह भी है कि कोविशील्ड और कोवैक्सीन सस्ती क्यौं मिल गई । ये दोनों वैक्सीन मेड इन इंडिया क्यौं हैं ?

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दर्द अपनी ही बोलियों पर भी है, अब खीज दूसरों पर निकाल रहे हैं । पहले कहते थे कि दुनिया वैक्सीन बना रही है और हम थाली बजा रहे हैं , दिए जला रहे हैं । अचानक समझ आया कि हमने एक नहीं, दो दो वैक्सीन बना ली तो आस्ट्रेलिया की पढ़ाई की भी भद्द पिटवा दी । अमेरिका के साथ बसा देश ब्राजील , भारत बायोटेक से एक करोड़ कोवैक्सीन मंगा रहा है और हमारे दुखियारे नेता गर्दभ राग सुना रहे हैं । सचमुच, हद ही हो गई !

अब मेड इन इंडिया हैं तो मोदी की हैं, मतलब बीजेपी की हैं । तो बीजेपी की वैक्सीन कैसे लगवाएं ? मतलब एक ही है कि आओ भड़काएँ ! कमाल की बात है । बचपन से सुनते आए हैं कि कुछ बड़े लोगों के तो कपड़े भी फ्रांस धुलने और सिलने जाते थे । ऐसे लोग तो आज भी हजारों हैं जो एक हफ़्ते के विदेशी टूर पर हो आएं तो उन्हें अपना देश बुरा लगने लगता है । भारत सरकार के मेक इन इंडिया , मेड इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों पर जो सवाल उठाते आये हैं , देश की रक्षा लिए राफेल मिलने पर जिन्हें एतराज है , सर्वोच्च संसद में पारित कानून भी जिन्हें प्रदर्शन कराने योग्य लगें , उन्हें अपने देश में बनीं सस्ती वैक्सीन भला क्या रास आएगी ?

*आम कहावत है कि घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध* ।

कोविशील्ड को ब्रिटेन के आक्सफोर्ड और एस्ट्रोजेनिका ने मिलकर डेवलप किया है । इसका पूरा निर्माण पुणे में भारतीय कम्पनी द्वारा किया गया हैं । लेकिन हैदराबाद में बनीं कोवैक्सीन तो पूर्ण स्वदेशी है । मतलब विकसित भी यहीं हुई , बनी भी यहीं ।
भारत बायोटेक वैक्सीन के 3rd स्टेज के ट्रायल्स भारत में ही नहीं, 25 देशों में चल रहे हैं । यह वैक्सीन 100₹ में उपलब्ध है । बस यहीं दर्द शुरू होता है । 3000 में मिलती या विदेश से आती तो बढ़िया, 100₹ में मिल गई तो घटिया ?

आ गई न सारी बात समझ में ? घर में तैयार हुई तो घटिया, बाहर से आती तो बढ़िया । चीन की वैक्सीन तो करोड़ों की संख्या में बनी पड़ी है, कोई खरीदार ही नहीं । पता है जिस कोवैक्सीन पर अपने देश में लाल पीले रंग बदले जा रहे हैं, उस कोवैक्सीन के लिए दुनिया के 27 देशों से ऑर्डर आए हैं । कोवैक्सीन भारत में ही नहीं , विश्व में भी अभी किसी को दी नहीं गई है । भारत में भी बहुत इमरजेंसी होने पर ही दी जाएगी । हाँ, थर्ड ट्रायल के रिजल्ट आने पर सबको दी जाएगी । इस वैक्सीन में देश का बहुत मोटा धन लगा हुआ है, अतः भारत को इस वैक्सीन की प्रतीक्षा भी किसी से कम नहीं ।

देश भी अपना, सरकार भी अपनी, वैक्सीन भी अपनी । तो विदेशी कुप्रचार में भागीदार मत बनिए । अपने देश में बनाई गई वैक्सीन के महान काम को सपोर्ट कीजिये, बस विरोध के चश्मे पहनकर बखिया मत उधेड़िये।
लेखक: विवेक मोहन प्रधान-एफबी(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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