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खेती किसानी पर कोरोना के साईड इफेक्टस

Report from ground zero Kondagaon Bastar- Chhattisgarh.

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Positive India:Bastar;12 April 20:
सुभाष मंडल बस्तर संभाग के कोंडागांव जिले की एक साधारण और बेहद मेहनती किसान हैं, खुद की कोई जमीन नहीं है। दूसरे किसानों की खाली पड़ी जमीने किराए पर लेकर साग सब्जियों की खेती करते हैं। अपना भी परिवार पालते हैं, जमीन मालिक को किराया भी देते हैं ,तथा आसपास के पचासों मजदूरों के घर का चूल्हा भी जलाते हैं। पिछले कई सालों से मेहनत करके सब्जियां तथा विशेषकर मिर्ची की खेती करते आ रहे हैं। बैंक इन्हें कर्जा देते नहीं, क्योंकि उनके नाम पर कोई खेती , जमीन जायदाद भी नहीं है और ना ही कोई ऐसी परिसंपत्ति है जिसे बैंक में बंधक रखकर वह बैंक से कर्जा ले सके। इसलिए आसपास के साहूकारों से हर वर्ष खेती की शुरुआत में कर्ज लेते हैं और फसल बेच कर समय पर मय सूद के आना, पाईं पूरा कर्जा उतार देते हैं। जाहिर है, साहूकारों का ब्याज दुगना तिगुना होता है पर फिर भी धरती मां की कृपा, अपनी मेहनत तथा पसीने के बूते अब तक वह समय पर पूरा कर्जा भी पटाते आए हैं और इसी से अपना घर परिवार भी चलाते आए हैं। हर वर्ष कर्जा लेकर समय पर पटाने के कारण स्थानीय साहूकारों में उनकी साख भी अच्छी है, साहूकार उन्हें केवल उनकी जुबान पर लाखों रुपए कर्ज देने में नहीं हिचकते। पर इस साल कोरोना के लाक डाउन ने उन्हें पूरी तरह से गच्चा दे दिया है ,उन्होंने अपनी पूरी अब तक की सारी कमाई तथा साहूकारों से ऋण लेकर लगभग अट्ठारह लाख खर्च कर मिर्ची की खेती लगाई है। फसल खड़ी है और उनका कहना है अब तक 4- 5 उड़ाई हो जाती है पर अब दोहरी समस्या है एक तो फसल तोड़ने के लिए किसानों को मजदूर ही नहीं मिल रहे हैं और मिर्च पेड़ों पर ही पकते जा रही है दूसरी बात जो सबसे बड़ी चिंता का विषय है बाजार में 1 ₹20 ₹25 किलो तक बिकने वाली हरी मिर्च ₹5 से ₹ 7 किलो में खरीदार ले रहे हैं । जबकि मिर्च तोड़ने का खर्चा ही ₹3 से ₹4 प्रति किलो बैठता है।

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सुभाष मंडल बताते हैं कि आस-पास के गांव में ग्राम पंचायतों ने फरमान जारी कर दिया है कि कोई भी आदमी गांव से बाहर नहीं जाएगा, और ना ही बाहर का आदमी गांव में आएगा। गांव वाले लाकॅडाउन(Lockdown) का मतलब यही समझ रहे हैं कि शहर नहीं जाना है वहां लट्ठ बरसाए जा रहे हैं, और गांव में सब तरह के काम बंद कर दिए जाएं, जिससे कि कोई भी आदमी गांव से बाहर नहीं जा रहा है। जिससे उन्हें मिर्ची तोड़ने वाले मजदूर बिल्कुल ही नहीं मिल रहे हैं। उनका कहना है कि अब तक वह केवल तीन लाख रुपए ही अपनी फसल से वसूल कर पाए हैं, और वर्तमान खेती के हालात तथा बाजार की चाल को देखते हुए,आगे अब इस फसल से और कुछ भी मिलने की उम्मीद भी छोड़ चुके हैं, वह तो यहां तक कह रहे हैं कि हम आस-पास के गांव के लोगों को यह भी कह चुके हैं कि वो चाहे तो अपने उपयोग के लिए मिर्ची मुफ्त तोड़ के ले जा सकते हैं। उनके चेहरे पर इस भारी घाटे तथा कर्ज आजाद न कर पाने की भारी छटपटाहट, दर्द और निराशा आसानी से पढ़ी जा सकती है। आज सुबह अंचल के प्रसिद्ध समाजसेवी, नवाचारी कृषक‌‌‌ तथा मेरे अग्रजतुल्य भाई प्रेमराज जैन ने जब इस किसान के इन कठिन हालातों के बारे में मुझे बताया तो मैंने उन्हें मेरे पास भेजने हेतु कहा । यह जानकर कि मैं छत्तीसगढ़ सब्जी उत्पादक संघ का अध्यक्ष तथा अखिल भारतीय किसान महासंघ का राष्ट्रीय संयोजक हूं, वो इस आशा से अपनी व्यथा सुना रहे हैं, कि शायद कोई राह ऐसी निकले , जिससे कि इन्हें, इनकी खून पसीने से उगाई फसल का उचित दाम इन्हें मिल पाए और यह कर्ज के दुष्चक्र से अपने को निकाल सकें। हालांकि ,इसे लेकर न तो मैं स्वयं आश्वस्त हूं, और ना ही मैं सुभाष मंडल को आश्वस्त कर पा रहा हूं।

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इन हालातों में हम सबकी नजर सरकार पर ही टिकी है कि वह ऐसे भूमिहीन तथा लीज पर साग सब्जियों की खेती करने वाले किसानों की नष्ट हुई खड़ी फसल का आकलन कर उन्हें बीमा योजना अथवा अन्य किसी योजना के तहत लाभान्वित कर देखी दिशा पर ठोस कदम उठाए, जिससे कि यह किसान आने वाली रबी की फसल की समुचित तैयारी कर सकें।

कोरोना(Corona) कहर के बीच सुभाष मंडल की यह व्यथा कथा दरअसल चावल की हांडी की एक दाने की व्यथा कथा है। दरअसल यह भूमिहीन किसान गांवों के ही वो पढ़े लिखे बेरोजगार युवक हैं, जिन्होंने रोजगार के लिए अपने गांव को छोड़कर बड़े शहरों का रुख नहीं किया तथा गांव पर रहकर ही रोजगार के नए तरीके तलाशने की कोशिश की और, जिन्होंने बड़े किसानों कि खेतों पर मजदूरी करने के बजाय उन किसानों की खाली बंजर पड़ी जमीनों को लीज अथवा मौखिक किराए पर लेकर उस पर अपनी कड़ी मेहनत और पसीने के दम पर अल्पकालीन साग सब्जी की फसलें उगा कर स्वरोजगार का एक नया तरीका ,एक नई राह दिखाई है।

कोंडागांव, जगदलपुर तथा आसपास के जिलों में सुभाष मंडल जैसे हजारों प्रगतिशील युवा किसान है जो या तो बैंक से अल्पकालीन कर्ज लेकर अथवा ज्यादातर आसपास के मित्र रिश्तेदारों साहूकारों से कर्ज लेकर मिर्ची, साग सब्जी, अदरक, हल्दी, मसाले, औषधीय,सुगंधी फसलों तथा अन्य अल्पकालिक नकदी फसलों की खेती करते हैं । एक ओर जहां वह आसपास के इलाकों, बड़े शहरों तथा अन्य प्रदेशों तक की साग सब्जी की जरूरतों को पूरा करते हैं, वहीं दूसरी ओर वह अपने गांव तथा आसपास के बेरोजगारों को अपने खेतों पर रोजगार भी देते हैं लेकिन अफसोस कि लाकॅडाउन ने अल्पकालिक खेती के इस कच्चे धंधे को जड़ से ही उखाड़ दिया है। जरूरत है कि सरकार सुभाष मंडल जैसे अचिन्हित भूमिहीन किसानों के महत्त्वपूर्ण योगदान को समझें, उनकी पहचान करें उन्हें पंजीकृत करें तथा उनको भी राहत पहुंचाने की बारे में भी गम्भीरता से विचार करे,, जिनके पास ना तो खेती का पट्टा है , ना वो पंजीकृत किसान हैं, और ना ही कृषि अथवा उद्यानिकी विभाग में उनका कोई रिकॉर्ड है ,उनके लिए ना कोई अनुदान की योजना है, ना कोई बीमा योजना है,, बेशक वे देश के मिर्ची, साग सब्जी, अदरक , मसाले उत्पादन में सबसे ज्यादा योगदान देने वाले किसानों में से हैं। हमारे देश में साग सब्जियां जहां शाकाहारियों का न केवल प्रमुख भोजन है बल्कि पोषक तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों का भी प्रमुख स्रोत है, इतना ही नहीं, मांसाहारी परिवारों का भी बिना साग-सब्जियों के गुजारा नहीं चलता।

लेखक:राजाराम त्रिपाठी-अध्यक्ष-साग सब्जी उत्पादक संघ, छत्तीसगढ़।

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