मेरे दिल अजीज पर श्रंगार का रस-राही की कलम से
जान हथेली पर रखना है, आज शाम उनसे मिलना है।
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वृंदावन धाम की यात्रा से वापस आते ही कवि राजेश जैन राही पर चढ़ा श्रंगार का रस, देखिए एक ग़ज़ल के माध्यम से क्या कह रहे हैं और कैसे श्रंगार का रस चढ़ा रहे है कवि राजेश जैन राही:
जान हथेली पर रखना है,
आज शाम उनसे मिलना है।
जीवन जिसको कहती दुनिया,
चलना चलना बस चलना है।
लाख बुलंदी पर बैठा हो,
इक दिन उसको भी ढलना है।
उनकी गलियों में जो भटका,
मुश्किल उसका फिर मिलना है।
मेरे हिस्से में खामोशी,
उनके हिस्से में कहना है।
मन मरुथल सा प्यासा प्यासा,
वह प्रियतम मीठा झरना है।
उनकी राहें महकी महकी,
मेरे पाँवों को तपना है।
पास नहीं है पता ठिकाना,
लेकिन वह अब तक अपना है।
‘राही’ का वह बने हमसफर,
शेष यही अब इक सपना है।
राजेश जैन राही, रायपुर