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शूटर की कोई आइडियालॉजी नहीं होती, अतीक के मारे जाने से बहुत से पीड़ितों को सुकून मिला होगा

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
शूटर की कोई आइडियालॉजी नहीं होती, वह सिर्फ़ अपने मालिक के लिए काम करता है । मरने वाले से उसका परिचय हो या दुश्मनी हो यह भी ज़रूरी नहीं ।

गैंग ऑफ़ वासेपुर और मिर्ज़ापुर जैसी सीरियल फ़िल्में देख कर जवान होती पीढ़ी में अपराध की दुनिया में जाने का क्रेज़ बढ़ा है हालाँकि ये फ़िल्में पूरी तरह काल्पनिक होती हैं लेकिन एक स्वप्न लोक का सृजन करती हैं । कच्चे मन पर इनका गहरा असर पड़ता है । सीधे रास्ते से सफल होने के लिए बड़ी प्रतिद्वंद्विता है अंडरवर्ल्ड में प्रसिद्धि और अपार पैसा है । अबू सलेम केवल एक शूटर था जिसने किसी के हुक्म की तामील करते हुए गुलशन कुमार को मार डाला । उसके पीछे का डॉन तो आज भी पकड़ा नहीं गया ।

अतीक अहमद भी एक ताँगेवाले का बेटा था । भाईगीरी में न आता तो शायद टैंपो चला रहा होता । अब नये रंगबाज़ उससे प्रेरणा लेते हैं ।

ये जय श्रीराम के नारे लगाने वाले भी किधर से भी रामभक्त नहीं लगते । इन्होंने वही किया है और बोला है जो इनके आक़ाओं ने हुक्म दिया होगा । इनकी औक़ात नहीं हैं कि लाखों की ज़िगाना पिस्तौल रख सकें ।

पुलिस से भारी चूक हुई है और योगी जी ने क़तई ऐसा नहीं सोचा होगा । कस्टडी में मर्डर किसी भी पुलिस के ऊपर कलंक होता है वह भी मीडिया के सामने ।

ख़ैर अब नये सिरे से जाँच शुरू हो गई है और सच्चाई देर सवेर सामने निकल कर आएगी । बहुत से पीड़ितों को सुकून मिला होगा तो कुछ लोग जश्न भी मनाएँगे ।

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)

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