Positive India: Rajkamal Goswami:
शिया और सुन्नी
इस विषय पर लिखने का मूल उद्देश्य इतना भर है कि लगभग १००० वर्षों के साथ के बावजूद एक औसत भारतीय इस्लाम के विषय में कम जानकारी रखता है और अगर रखता भी हैं तो एकपक्षीय । किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना मेरा उद्देश्य नहीं है किंतु इतिहास को कपड़े पहना कर पेश करना भी मेरा काम नहीं है, यह दर्जी का काम है ।
शिया और सुन्नी विवाद का बीज पैग़ंबर के जीवनकाल में पड़ गया था । इस संबंध में कुछ चरित्रों को समझ लेना ज़रूरी है ।
हज़रत अबू बक्र सिद्दीक पैग़ंबर के वफ़ादार साथी थे और मक्का से मदीना की हिजरत में पैग़ंबर के साथ थे । दोनों ने मक्का के पास एक गुफा में तीन रातें छुप कर बिताई थीं । इस गाढ़े वक़्त में अबू बक्र की एक पुत्री अस्माँ उन को भोजन पहुँचाती थीं । हज़रत अबू बक्र की दूसरी पुत्री हज़रत आयशा का विवाह पैग़ंबर के साथ तब हुआ था जब उनकी पहली पत्नी बीबी ख़दीजा का देहांत हो गया और निजी ज़िंदगी में वह अकेले पड़ गये।
हज़रत अली अबू तालिब के पुत्र थे । अबू तालिब पैग़ंबर के चाचा थे और उन्होंने पैग़ंबर को बचपन से पाला था । हज़रत अली सबसे पहले ईमान लाने वाले मुसलमान थे और बहुत ही साहसी और बहादुर थे । हिजरत से पूर्व पैग़ंबर उन्हें अपनी जगह अपने बिस्तर पर सुला कर गये थे ताकि शत्रुओं को कोई शक न हो और वह सुरक्षित मक्का से निकल जायें । पैग़ंबर की एकमात्र उत्तरजीवी पुत्री फ़ातिमा का विवाह हज़रत अली से हुआ था । अली के चाहने वाले उनमें पैग़ंबर का उत्तराधिकारी देखते थे ।
हज़रत आयशा एक बार काफिले के साथ आ रही थीं । काफ़िले ने एक जगह पड़ाव किया और जब काफिला चलने को हुआ तो उसी वक़्त आयशा का कोई आभूषण कहीं गिर गया । आयशा उसको खोज ही रही थीं कि काफिला चल पड़ा । अल्प वयस्क आयशा काफी हल्की फुल्की थीं । कहार पालकी उठा कर ले गये , उन्हें अंदाज़ ही नहीं लगा कि आयशा पालकी में नहीं हैं । आयशा जब लौटीं तो हतप्रभ रह गयीं । काफिला जा चुका था लिहाज़ा रात भर वह वहीं बैठी रहीं । सुबह एक सहाबी सफ़वान उधर से गुज़रा तो उस ने आयशा को पहचान लिया और ससम्मान उनको ऊंट पर बैठा कर ख़ुद ऊंट की रास थाम कर मदीना ले आया ।
इसके बाद तो लोकापवाद हो गया । पैग़ंबर की पत्नी थीं तो क्या हुआ लोगों की ज़बान कौन रोक सकता था । एक अजनबी के साथ रात भर बाद वह लौट कर आई थीं । लोगों का मनोविज्ञान संसार भर में एक जैसा होता है । कभी सीता को भी ऐसे ही लोकापवाद का सामना करना पड़ा था और राम को उन्हें त्याग देना पड़ा था । पैग़ंबर भी उसी मुसीबत में थे । उन्होंने हज़रत अली से परामर्श लिया । हज़रत अली ने मशवरा दिया कि आयशा पर नियुक्त दासी के बयान लिये जायें । आयशा को तात्कालिक रूप से उनके पिता के घर भेज दिया गया । लगभग एक महीने बाद क़ुरान की आयत उतरी जिसने आयशा को निर्दोष साबित किया और वह पुन: पति के घर लौटीं । कहते हैं कि हज़रत अली के प्रति आयशा का दिल तभी से खट्टा हो गया ।
आगे चल कर आयशा और अली के बीच बाक़ायदा जंग के मैदान में युद्ध हुआ जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे । अपने मुसलमान मित्रों से मैं अनुरोध करूँगा कि अगर कोई तथ्यात्मक त्रुटि हो तो वह इंगित अवश्य कर दें ।
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)